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​Animal Husbandry: बछियों को होने वाले दस्त के क्या हैं लक्षण, कैसे की जा सकती है इस बीमारी से रोकथाम

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन में जब बछड़ियों के जन्म के बाद अगर बछियों की सही से देखरेख न की जाए तो उन्हें बीमारियां लग सकती है. बछियों में सबसे आम बीमारी दस्त की है. अक्सर बछियों को दस्त हो जाते हैं. इसके चलते वो कमजोर होने लगती हैं. वक्त से इलाज न किया जाए तो बीमारी ज्यादा गंभीर रूप ले लेती है. एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि दस्त के कारण बछड़ी के शरीर में से बहुत अधिक मात्रा में पानी व खनिज लवण घट जाते हैं. दस्त की वजह से बछियों के शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इसे चलते उनकी मौत हो जाती है.

बछियों को मौत से बचाने के लिए जितनी जल्दी हो सके पानी व खनिज लवण इत्यादि की भरपाई करें. प्रतिदिन बछड़ों को 2-4 लीटर खनिज-लवण का घोल पिलाना जरूरी होता है. बछड़ों को दिया जाने वाला खनिज लवण का घोल वह उसके सामान्य आहार के अतिरिक्त होना चाहिए. वहीं जल्द से जल्द बछड़ों को पशु चिकित्सक को दिखाकर दस्त की वास्तविक वजह का पता लगाएं और उसका उचित उपचार करें. बछड़ियां टेबल सुगर (सुकोज़) को प्रभावी तौर पर पचा नहीं पाती और वह ज्यादा दस्त करती हैं जिससे बछड़ी के शरीर से ज्यादा पानी व खनिज लवण का घटाव होता है. इसलिए ग्लूकोज सबसे बेहतर होता है.

लक्षण क्या हैं पढ़ें यहां
इसमें कोई खास लक्षण नहीं दिखता है. आमतौर पशु सामान्य रहता है. हालांकि मामूली टेंशन दिखती है. वहीं आंखे धंसी आौर कमजोर जरूर दिखती हैं. कई बार बछिया तनाव के कारण जमीन पर लेटी हुई नजर आती हैं. वहीं उनके मसूड़े सूखे नजर आते हैं. कई बार उन्हें खड़े होने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कान-पूंछ व पैर ठंडे, त्वचा खिची हुई नजर आती है. पशु अचेत हो जाते हैं और फिर उनकी मौत हो जाती है. आंख के ऊपर की त्वचा, छाती व गर्दन के आसपास की त्वचा को खींचकर जब छोड़ा जाए तो उन्हें अपने वास्तविक स्थिति में तेजी से लौट आना चाहिए.

पशु चिकित्सक से करें संपर्क
त्वचा को सामान्य अवस्था में लौटने में जो समय लगता है उससे निर्जलीकरण का पता चलता है. जिन बछड़ियों में 8 फीसदी से अधिक निर्जलीकरण का लक्षण दिखाई पड़ता है उन्हें तुरंत नस के माध्यम से तरल चिकित्सा की आवश्यकता होती है और इसलिए तत्काल पशुचिकित्सक से संपर्क करें.

बछड़ियों दस्त की रोकथाम
बछड़ी को जन्म के 6 घंटे के अंदर पर्याप्त खीस पिलाना चाहिए. ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े. जन्म के बाद बछड़ी का साफ-सुथरे व सूखे स्थान पर रख-रखाव सुनिश्चित करें. बछड़ों को थन से दूध पिलाने के पहले थन को सही तरह से साफ कर लेना चाहिए.

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