नई दिल्ली. पोल्ट्री चेचक एक समान्य रूप से मौजूद, धीमी गति से फैलने वाली वायरल डिसीज है. इस रोग में स्किन, स्वास एवम पाचन तंत्र की नालीकाओं में मस्सा का इजाफा हो जाता है. आर्थिक तौर पर इस बीमारी का बहुत महत्व है क्योंकि इसके कारण शारीरिक वृद्धि रुक जाती है और अंडों का उत्पादन भी कम हो जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि एवियन पॉक्स वाइरस (वृहद डीएनए वाइरस) जो कि डिसइंफेक्टेंट रोधि है. सख्त वातावरण में भी वर्षों तक जीवित रहने कि क्षमता रखती है.
मुर्गी में चेचक एक छुआछूत रोग है जो सीधा सम्पर्क, मिट्टी, मछ्छर काटने एवम् अन्य कीड़े के काटने से भी फैलता है. आमतौर पर बरसात और ठंड के समय अथवा लगातार ज्यादा भीड़ एवम् दूषित वातावरण में भी फैलता है. रोग की पहचान की बात की जाए तो यह रोग सभी आयु वर्ग, लिंग एवम् सभी नस्ल के पोल्ट्री में पाया जाता है. इस बीमारी के दो प्रकार हैं. क्यूटेनीअस और डिपथेरिक.
क्युटेनीअस चेचकः मुर्गी की त्वचा, चोटी, वेटल, चोंच के बाहरी किनारे, एवम् शरीर के अन्य भाग के त्वचा पर पपड़ी पर जाती है. लीज़न पहले बहुत छोटे होते हैं लेकिन समय के साथ ये बड़े होते जाते हैं. इसके चलते कुछ समय बाद मुर्गी की देखने कि क्षमता कम हो जाती है और मुर्गी के खाने में दिक्कत होती है. इसके कारण मुर्गी धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाती है और उसकी मौत हो जाती है. इस बीमारी में करीब-करीब 25 प्रतिशत तक मृत्यु दर देखने को मिला है.
डिप्थेरिक चेचकः इस रोग को वेट या फाउल डिप्थेरिया भी कहा जाता है. शुरुआत में मुंह के अंदरूनी भाग, इसोफेगस एवम् स्वास नली में छोटे-छोटे गांठ की परतें बन जाती हैं. बाद में ये गांठ बड़े पीले रंग के बन जाते हैं और इसे डिप्थेरिक झिल्ली कहा जाता है. सांस और पाचन नलिका की झिल्ली मोटी होने के कारण मुर्गी को खाना नही खा पाती है. शरीर में पौष्टिक तत्वों का पाचन भी नही हो पाता है. इसके चलते पक्षी बीमार एवम् कमज़ोर होकर मर जाते हैं.
चेचक बिमारी का कैसे करें इलाज
त्वचा पर दाने आना, चेचक रोग का एक मुख्य लक्षण है एवम् दूसरे शुरुआती लक्षण के द्वारा भी पता लगाया जा सकता है. प्रयोगशाला में लीज़न से नमूना लेकर स्लाईड पर स्मीअर बना कर, जिम्सा स्टेन से स्टेन किया जाता है. ईओस्नोफिल ब्लड सेल्स के भाग में इंक्लूज़न बॉडी दिखाई देती है, जिसे बोरल बॉडी कहा जाता है. बोरल बॉडी चेचक बिमारी को सुनिश्चित करने के लिए जांच की आवश्यकता होती है.
बीमारी फैलने से कैसे रोकें
ब्रॉड्स्पैक्ट्रम एंटीबायोटिक औषधि एवम् एंटीसेप्टिक लोशन चेचक के दानों (घाव) पर लगाने से सेकेंड्री इंफेक्शन को नियंत्रित किया जा सकता है. अगर चेचक का प्रकोप होता है एवम् 30 प्रतिशत से कम मुर्गीयां चेचक रोग से प्रभावित हैं तो स्वस्थ मुर्गीयों को जल्दी से रोग ग्रसित मुर्गीयों से अलग करना चाहिए. ताकि बची हुई स्वस्थ मुर्गीयों का तुरंत टीकाकरण कराया जा सके. दो प्रकार के चेचक के टीके बाज़ार में उप्लब्ध हैं. (पीजन पॉक्स एवम् फाऊल पॉक्स). पीजन पॉक्स टीका, फाऊल पॉक्स टीका के तुलना में कम हानीकारक होती है लेकिन इसमें मात्र 6 महीने तक ही चेचक रोग रोधक क्षमता होती है.
लगवाई जा सकती है वैक्सीन
इसलिए 6 माह बाद पुनः टीकाकरण कराने की ज़रूरत होती है. फाऊल पॉक्स एक लम्बे अवधी तक चेचक के खिलाफ रोग रोधक क्षमता देता है. अगर टीकाकरण सही तरीके से नहीं किया गया तो समूह में बिमारी फैल सकती है. सामान्य तौर पर चेचक टीकाकरण 6 से 8 सप्ताह के आयु वर्ग के मुर्गीयों में अंतः क्रिया या विंग वेब विधि द्वारा किया जाता है. वहीं मुर्गी फार्म की सफाई सोडीयम हाइड्रॉक्साईड (1:500), क्रेसोल (1:400) और फीनॉल (3%) से की जाए तो बीमारी फैलने से रोका जा सकता है.
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