नई दिल्ली. मछली पालन वैसे भी कम लागत में किया जाने वाला एक बेहतरीन व्यवसाय है. अगर इसके साथ मुर्गी पालन भी कर लिया जाए तो और ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है. ये ऐसा काम काम है जो एक साथ किया जा सकता है. इससे दोहरी कमाई भी हो सकती है. जबकि मुर्गी पालन करने से मछली पालन में खाद का खर्च भी कम हो जाता है. क्योंकि मुर्गियों की बीट मछलियों के लिए खाद का काम करती है. इसके चलते मछली पालकों को बड़ा फायदा मिलता है. हालांकि मछली फार्मिंग के साथ मुर्गी पालन किस तरह किया जाए इसकी जानकारी होना भी बहुत अहम है.
बात की जाए मुर्गियों तो ये 22 सप्ताह बाद अंडे देना शुरू कर देती हैं. मुर्गियों को 18 माह तक अंडे हासिल करते रहना चाहिए. हम सभी जानते हैं कि अंडों की डिमांड मार्केट में हमेशा बनी रहती है. जबकि मुर्गियों से मीट भी हासिल होता है. उससे भी कमाई होती है.
मछलियों के लिए तालाब का चयन
तालाब बारहमासी कम से कम 2 मीटर गहरे तथा ताल में पानी भरने के लिए जलश्रोत हो, एसे तालाब का चयन करना चाहिए. जलीय वनस्पति का को तालाब से बाहर निकाल देना चाहिए. अनचाही एवं मांसभक्षी मछलियों को मछली बीज डालने से पहले तालाब से निकलवा देना चाहिए. इन्हें निकालने के लिए बार-बार जाल चलाकर निकाल सकते हैं, इन्हें निकालने हेतु 2500 किलो ग्राम प्रति हेक्टर महुआ खली का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा चूने का प्रयोग भी किया जाना चाहिए. एक हेक्टर जलक्षेत्र में 250-350 किलोग्राम चूना डालना चाहिए. मछली के साथ मुर्गीपालन के लिए तालाब में प्रति हेक्टर 5000 अंगुलिकाएं प्रति हेक्टर की दर से संचय करना बेहतर होता है. समय-समय पर यानि हर महीने जाल चलाकर इनकी ग्रोथ एवं बीमारी का पता लगाते रहें. बीमारी की जानकारी होने की दवा में उचित उपचार करें. एक हेक्टर जलक्षेत्र के पोखर से प्रतिवर्ष 2500 से 3000 किलोग्राम मत्स्य उत्पादन लिया जा सकता है.
एकीकृत मछली सह मुर्गीपालन से लाभ
मछली के साथ मुर्गीपालन से मछली अंडे एवं मांस प्राप्ति से अधिक आय होती है. तालाब में मछलियों के लिए अतिरिक्त खाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि मुर्गियों के लीटर से इसकी पूर्ति हो जाती है. बात मुर्गियों के लिए आहार की जाए तो मुर्गियों को उम्र के मुताबिक संतुलित मुर्गी आहार दिया जाता है. आहार फीड हापर में रखा जाता है, ताकि आहार बेकार न जाए. 9-20 सप्ताह तक “ग्रोअर मेष” 50-70 ग्राम प्रति पक्षि प्रति दिन की दर से और इसके बाद लेयर मेष 80-120 ग्राम प्रतिदिन की दर से आहार दिया जाता है.
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