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Disease: पशुओं के शरीर के अंदर पड़ जाएं कीड़े तो ऐसे करें इलाज, पढ़ें यहां

पशु को पानी से भरे गड्ढे में रखना चाहिए या पूरे शरीर को ठंडा पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए. शरीर के तापमान को कम करने वाली औषधि का प्रयोग भी कर सकते हैं.
पानी में खड़ी भैंसों की तस्वीर.

नई दिल्ली. कृमि परजीवी यानि कीड़ा है जो पशु के पाचनतंत्र के अंदर रहकर उसके उत्तक द्रव Tissue fluid या खून को चूसते हैं. ये फेफड़े, सांस की नली और आंख इत्यादि में भी पाए जा सकते हैं. इनके अंडे गोबर के साथ बाहर आते हैं जो चारागाह, दाना या पानी के स्रोतों को दूषित करते हैं और कुछ मामलों में इंसानों में भी बीमारी पैदा करते हैं. आमतौर पर चार प्रकार के कृमि होते हैं. गोलकृमि और फीताकृमि पाचनतंत्र में पाए जाते हैं जबकि फ्लुक चपटे कृमि रूमेन व लीवर में पाए जाते हैं). जबकि चौथा कृमि सिस्टोसोम, खून की शिराओं में होता है.

एक्सपर्ट का कहना है कि कृमि के प्रकार के आधार पर विभिन्न तरह की उपचार की जरूरत होती है. तभी इनका इलाज संभव हो सकता है. आइए इसके बारे में डिटेल से जानते हैं.

कृमि उपद्रव के लक्षण
कृमि उपद्रव के लक्षण की बात करें तो इसमें दस्त, वयस्कता में देरी, शरीर ग्रोथ दर व दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, काम करने की क्षमता और दाना रूपांतरण क्षमता में कमी, बीमारी के प्रतिरोधक क्षमता में कमी आदि देखी जाती है. एम्फीस्टोम के उपद्रव (रूमेन व लीवर फ्लुक) में तेज बदबू युक्त दस्त और निचले जबड़े में पानी भर जाना (बोतल जॉ) भी देखा जा सकता है. लीवर फ्लुक के संक्रमण में पीलिया देखा जा सकता है.

फीता कृमि के लक्षण
फीता कृमि के संक्रमण में लटकता हुआ उदर और गोबर में इसका हिलता हुआ छोटा सफेद टुकड़ा देखा जा सकता है. इसकी लंबाई की वजह से अंतड़ी में रुकावट भी हो सकती है. हुक कृमि (एक प्रकार का खून चूसने वाला गोल कृमि) और सिस्टोसोम के उपद्रव से खून की कमी और खूनी दस्त हो सकता है. वहीं नाक बहना, सांस लेने में दिक्कत और छोटी सांस सिस्टोसोमस के संक्रमण में देखा जा सकता है. फेफड़े में कृमि की वजह से खांसी हो सकती है. बछड़ी को प्रथम कृमिनाशक की खुराक 10-14 दिन की उसकी उम्र पर देना तथा उसे मासिक रूप से तब तक दोहराना जब तक बछड़ी 6 माह की न हो जाए.

दो बार पिलानी चाहिए दवा
6 माह या उससे अधिक उम्र के सभी पशुओं को साल में दो बार कृमिनाशक दवा-पहली बार बरसात के पहले और दूसरी बार बरसात के अंत में देनी चाहिए. रूमेन बाईपास से बचने के लिए दवा मुंह में देने की बजाये जुबान के पीछे देनी चाहिए. इनके अंडों की संख्या कम करने के लिए कृमिनाशक दवा सामूहिक रूप से बड़े स्तर पर चाहिए. गाभिन पशुओं को भी कृमिनाशक दवा दो बार देनी चाहिए. पहली खुराक प्रसव के आसपास और दूसरी खुराक प्रसव के 6-7 सप्ताह बाद यदि उपचार से पशु को फायदा नहीं होता तो उसके गोबर को पशु चिकित्सक से जांच कराकर कृमि संक्रमण अनुसार सही दवा का प्रयोग करना चाहिए.

एक्सपर्ट से जरूर ले लें सलाह
वहीं नम स्थान पर घोंघे इत्यादि पनपते हैं जहां फ्लुक और सिस्टोसोम के संक्रमण का अंदेशा हो सकता है. क्योंकि इन परजीवियों का जीवन चक्र घोंघे के बगैर पूरा नहीं हो सकता. किसी भी प्रकार की कृमि के प्रभावी उपचार के लिए यह आवश्यक है कि हम किसी जानकार व्यक्ति से सलाह लेकर दवा का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें.

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