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Animal Fodder: ज्यादा प्रोडक्शन के लिए पशुओं को किस तरह का दिया जाना चाहिए चारा, यहां पढ़ें डिटेल

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प्रतीकात्मक फोटो। livestockanimalnews

नई दिल्ली. पशु आहार को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है चारा व दाना. इसी प्रकार चारे को भी दो भागों में बांटा जा सकता है. सूखा चारा और हरा चारा. सूखा चारा जैसे धान की पराली, गेहूं का भूसा, मक्का, ज्वार तथा बाजरे की कड़वी आदि. यह सब फसल से बची सामग्री है. जिसमें पोषण तत्त्व बहुत कम होते हैं. इसके अलावा रिजका, बरसीम, लोहिया आदि के हरे चारे को पकने से पहले काटकर सुखने के बाद रखा जाता है. इस तरह से सुखाकर रखे हुए चारे में पोशक तत्त्व अधिक होते हैं. जिसे ‘हे’ कहते हैं हरा चारा भी दो तरह का होता है. फलीदार और अफलीदार.

अनाज में स्टार्च (ऊर्जा) अधिक होता है पर रेशा व प्रोटीन कम होते हैं, लेकिन पशु उसे चाव से खाते हैं. अनाज में खनिज लवण, जैसे सोडियम, क्लोरिन और कैल्शियम की कमी रहती है, पर फास्फोरस और पोटाश काफी मात्रा में होता है.

इसमें प्रोटीन होता है ज्यादा
विटामिन ‘बी’ और ‘ई’ का यह अच्छा स्त्रोत है. पीली मक्की में विटामिन ‘ए’ काफी मात्रा में होता हैं. जौ और जई पशुओं को बिना हिचक खिला सकते हैं. चने में कैल्शियम और फास्फोरस काफी होता है. वहीं ग्वार में प्रोटीन काफी मात्रा में होती है. पशु इसे कम पसंद करता है. दलहनी अनाज को दलने व पीसने के बाद इसके छिलकों को उपयोग में लाया जाता है. गेहूं के चोकर व भूसी में फास्फोरस काफी मात्रा में होता है. इसलिए पशुओं को खिलाए जाने वाले दाना मिश्रण में इसे मिलाया जाता है. चावल की पालिश स्वादिष्ट होती है पर इसमें गेहूं के चोकर की तुलना पोषण तत्त्व कम होता है. तिलहनों और खलियों में प्रोटीन अधिक होता है. ये खाने में स्वादिष्ट और सुपाच्य होते हैं. इनमें फास्फोरस की मात्रा अधिक और कैल्शियम की मात्रा कम होती है.

बिनौले की खल खिलाना चाहिए
खलियों में 10-12 प्रतिशत से अधिक नमी होने पर इसके स्टोरेज में सावधानी बरतनी चाहिए नहीं तो यह ख‌ट्टी पड़ जाती है फिर बदबू आने लगती है और फफूंद भी लग जाती है. सड़ी बदबूदार फलियों को खिलाने से पशुओं में बीमारी हो जाती है. इसलिए खाद्य पदार्थों को नमी तया सीलदार जगह में नहीं रखना चाहिए. बिनौले की जगह पशुओं को बिनौले की खल खिलानी ज्यादा फायदेमंद है. किसानों को यह भावना है कि बिनौला खिलाने से दूध में चिकनाई ज्यादा उत्पन्न होती है. जबकि यह सच नहीं है. चिकनाई की मात्रा थोड़ी बढ़ जरूर जाती है लेकिन कीमत के मद्दनेजर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. बिनौला खिलाने से दूध में चिकनाई के छोटे-छोटे कण आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं तथा दूध में साफ-साफ तैरते नजर आते हैं तथा इससे बनाया गया घी दानेदार होता है.

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