नई दिल्ली. पशुपालन में जहां पशुओं के दाना-पानी का ख्याल रखना बेहद अहम होता है. वहीं उसके आवास पर भी ध्यान देना जरूरी होता है. दअरसल, अलग-अलग जलवायु वाले क्षेत्रों में आवास व्यवस्था अलग होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो पशुओं को बीमारी लग जाती है और इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा. एक्सपर्ट का कहना है कि बारिश, तापमान और मिट्टी का प्रभाव पशु के उत्पादन पर पड़ता है. इसके आधार पर देश को पांच पशु पालन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है.
इस पांच हिस्सों में आपको ये बताने की कोशिश की जा रही है कि किस क्षेत्र में पशुओं के आवास से संबंधित क्या—क्या व्यवस्थाएं की जाएं. मसलन ज्यादा गर्म इलाकों में कैसे आवास बनाया जाए और उसमें किस तरह की व्यवस्था की जाए कि पशुओं को गर्मी से बचाया जा सके. इसी तरह ठंडे इलाके में पशुओं को ठंड लगने से कैसे बचाया जाए. आइए जानते हैं.
हिमालय क्षेत्र की क्या हो व्यवस्था
इस क्षेत्र में आसाम, बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, जम्मू कश्मीर को शामिल किया जाता है. इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है और सर्दी में बर्फ और पाला पड़ता है. इस क्षेत्र के पशुओं की आवास व्यवस्था बन्द और लकड़ी की होनी चाहिए. जिस की छते ढलावदार होती है. इससे पशुओं को फायदा मिलेगा.
सूखे उत्तरी क्षेत्र
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान के मैदानी हिस्से इस क्षेत्र में शामिल है. सूखा वातावरण पशु विकास के लिए सर्वोतम है. यहा पर वर्षा कम होती है. इसलिए खुले आवास की व्यवस्था अच्छी मानी गई है. बंद रखने पर पशुओं को दिक्कतें हो सकती हैं.
उत्तरी पूर्वी क्षेत्र
इस क्षेत्र में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम पूर्वी, उत्तर प्रदेश तथा उत्तर पूर्व के राज्य शामिल किया जाता है. जहां वर्षा अधिक होती है. इन इलाकों में धान का पुवाल पशु का स्थाई आहार होता है. इस तरह का चारा देने से पशुओं की जरूरत पूरी भी होती है. यहां पर खुली आवास व्यवस्था होनी चाहिए तथा छत ढलावदार होनी चाहिए.
दक्षिण क्षेत्र
इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आन्स प्रदेश सम्मिलित है. यह ह्यूमिडिटी वाला तथा मध्यम वर्षा वाला क्षेत्र है. यहां के लिए छप्पर की छतों वाला, कम खर्च वाला खुला पशुशाला बनाया जा सकता है.
तटवर्तीय क्षेत्र
इसके अन्तर्गत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उडीसा के कटिबन्धीय क्षेत्र को शामिल किया गया है. यह अत्याधिक आर्द्रता वाले और भारी वर्षा वाले क्षेत्र हैं. इसलिए पशु गृह पक्का और छते ढलावदार होने चाहिए जिससे भारी वर्षा से नुकसान न हो.
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