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Animal Husbandry: ​पशुओं को आग से बचाने के लिए क्या करें और क्या नहीं, पढ़ें यहां

आपदा प्रबंधन विभाग ने लोगों से अपील की है कि जलती हुई बीड़ी, सिगरेट, माचिस की तीलियां ऐसे ही ना फेंके. कुछ सावधानियां बरती जाएं तो आग लगने के खतरे को काफी कम किया जा सकता है.
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. पशुपालन में अक्सर पशुपालकों को आग लगने की वजह से बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है. दरअसल, ग्रामीण इलाकों में पशुओं के बाड़े कई बार ऐसी चीजों से बनाए जाते हैं, जिसमें आग बहुत तेजी से पकड़ लेती है. गलती से भी आग लग गई तो फिर पशुओं की जान पर बन आती है. दरअसल, पशु बाड़े के अंदर बंधे होते हैं, इसलिए खुद को बचा भी नहीं पाते हैं. कई बार तो पशु गंभीर रूप से जख्मी हो जाते हैं और कई बार उनकी मौत भी हो जाती हे. इस वजह से पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है.

हालांकि अग्नि आपदा से बचाव के लिए जरूरी कदम उठाए जाने से इससे बचाव हो सकता है. अगर पशुपालकों के इस बारे में जानकारी हो जाए तो वो पशुओं को बचा सकते हैं. या फिर अपना नुकसान कम से कम कर सकते हैं. बताते चलें कि बिहार राज्य के पशु एंव मत्स्य संसाधन विभाग की ओर से अग्नि आपदा से बचाव एवं पशुधन की हिफाजत के लिए किये जाने वाले कार्य के संबंध में एडवाइजरी जारी की गई है. इसमें बताया गया है कि आग लग जाने पर क्या करना है और क्या नहीं, आइए जानते हैं.

क्या करें
पशुशाला के पास आग बुझाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी, बालू मिट्टी तथा कम्बल इत्यादि मोटा कपड़ा रखा जाना चाहिए.

अगर पशुशाला में बिजली आपूर्ति होती हो तो बिजली वायरिंग की समय-समय पर जांच तथा मरम्मत करायी जानी चाहिए.

फूस के बने हुए पशुशाला की दीवारों पर मिट्टी का लेप लगाना चाहिए.

आग लगने पर आस-पड़ोस के लोगों के सहयोग से आग बुझाने का प्रयास करना चाहिए.

आवश्यकता होने पर आग बुझाने के लिए फायर बिग्रेड एवं स्थानीय प्रशासन को सूचित किया जाना चाहिए. गांव में हर संभव फायर बिग्रेड का सम्पर्क नम्बर लिखा जाना चाहिए.

पशुओं के जलने पर तत्काल पूरे शरीर पर ठंढ़ा पानी डालना चाहिए.

जलने के बाद जले भाग पर आरंडी तेल के मिश्रण का लेप लगाना चाहिए, आरंडी के तेल में तीन भाग तिसी का तेल (Linseed Oil) एवं एक भाग बुझे हुए चूना का पानी [Ca (OH),] का मिश्रण होता है.

तुरंत ही स्थानीय पशु चिकित्सालय से सम्पर्क करना चाहिए.

क्या न करें
पशुशाला के पास दीपक, लालटेन, मोमबत्ती या आग नहीं रखना चाहिए.

कटनी के बाद फसल अवशेषों को खेतों में नहीं जलाया जाना चाहिए.

जलती हुई माचिस की तिली, बीड़ी-सिगरेट के जलते हुए टुकड़े, जलती हुई अगरबत्ती इत्यादि यत्र-तत्र नहीं फेंकना चाहिए.

ठंढ़ से बचाव के लिए पशुओं को सिंथेटीक सामग्रियों से बने कपड़ों से नहीं ढकना चाहिए.

ठंड में अलाव जलाने पर अलाव को अच्छी तरह बुझाकर ही सोयें.

पशुशाला संकरे एवं बंद स्थान पर नहीं बनाया जाना चाहिए. बंद पशुशाला में कभी भी आग या धुंआ न करें. धुंआ से पशुओं में सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. थोड़ी असावधानी से पशुशाला में आग लग सकती है.

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