नई दिल्ली. पशुपालन की ओर ग्रामीण इलाकों में किसान तेजी के साथ रुख कर रहे हैं. पशुपालन से किसानों को काफी फायदा भी हो रहा है. दूध बेचकर किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. वहीं सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने को लेकर पशुपालन को बढ़ावा दे रही है. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पशुपालन के दौरान पशुओं को होने वाली बीमारियों को लेकर एडवाइजरी जारी की है. ताकि किसान पशुओं की बीमारी के बारे में जान सकें और वक्त रहते उसका इलाज करवा लें.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की एडवाइजरी में बीमारी से जुड़ी कई अहम बातें बताई गई हैं. बछड़ों से लेकर दुधारू पशुओं को किस तरह से बीमारी से बचाया जा सकता है इसके बार में पशुपालकों को बताया गया है. वहीं पशु पालक को कैसे पता चले कि पशु बीमार हैं. इन सब बारे में इस एडवाइजरी में बताया गया है. आइए जानते हैं क्या-क्या है अहम जानकारी.
बीमार पशुओं को अलग कर दें
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की एडवाइजरी के मुताबिक पशुओं की आंतरिक कृमियों जैसे राउंड वर्म, फ्लैट वर्म का निदान के बाद अलग-अलग तरीके से इलाज किया जाता है. इन्हें शरीर से निकालने के लिए पिपेरज़ीन का प्रयोग करें. वहीं पाउडर, फेनबेंडाजोल और एल्बेंडाजोल आदि का उपयोग किया जा सकता है. रोगग्रस्त पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. कहा गया है कि स्वस्थ पशु अगर रोगग्रस्त पशुओं के संपर्क में आ जाते हैं तो बहुत जल्दी बीमार पड़ जाते हैं. इसलिए सबसे पहले रोगग्रस्त पशुओं को अलग और स्वस्थ पशुओं को अलग रखना शुरू करें.
गोबर और खून की जांच कराएं
एडवाइजरी के मुताबिक यदि बीमारी का संदेह हो तो पूरे झुंड के मल/गोबर का प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाना चाहिए. विशेष रूप से उन जानवरों के लिए जो अच्छे भोजन प्रबंधन के बावजूद कमजोर दिखाई देते हैं. ऐसा करने से पशुओं की बीमारी के बारे में पता किया जा सकता है और उनका इलाज समय पर होने से पशुपालकों को नुकसा नहीं उठाना पड़ेगा. पशुओं की खून की जांच भी नियमित रूप से करानी चाहिए. ताकि बीमारी गंभीर होने से पहले ही पहचानी जा सके. बछड़ों को भी कम से कम 3-4 बार कृमि मुक्त कराना चाहिए
तीन महीने की उम्र तक कई बार कराना चाहिए.
Leave a comment