नई दिल्ली. पशु पालकों को अपने पशुओं की सफाई के प्रति हमेशा सजग रहना चाहिए. इसके लिये पशुओं को नियमित रूप से नहलाना व खरहरा करना बेहद ही अहम कामों में से एक है. जिससे पशु लम्बे समय तक काम कर सकें. इससे त्वचा के रोगों से बचाव के साथ-साथ उनकी खूबसूरती में भी इजाफा होता है. पशु साफ-सुथरे नजर आते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि साफ-सफाई और खरहरा करने के कई और फायदे भी हैं. मसलन रक्त संचार में वृद्धि होती है. वहीं शरीर से धूल, टूटे हुये बाल और त्वचा से निकले हुये मल की सफाई होती है. इसके अलावा स्किन से जूं व अन्य परजीवियों को हटाया जा सकता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि तेजी ब्रश से त्वचा ढीली और लचीली बन जाती है तथा उसमें प्राकृतिक चमक आ जाती है. खरहरा प्रदर्शनी में जाने वाले जानवरों के लिये जरूरी है. सख्त झाडू के रेशे क्य ब्रश, धान की पुआल, सूखी घास या सख्त बालों वाले ब्रश का प्रयोग खरहरा करने के काम आता है. ब्रश को बांई तरफ उपयोग करने के लिये दाएं हाथ तथा दाईं तरफ करने के लिये बाएँ हाथ से पकड़ा जाता है और खरहरा करने वाले का चेहरा पूंछ की तरफ होता है.
ब्रशिंग घुमाकर करनी चाहिए
एक्सपर्ट ये कहते हैं कि ब्रशिंग तेजी से घुमाकर करनी चाहिये. खरहरा गर्दन में कानों के पीछे से शुरु कर ब्रशिंग को बालों की दिशा की ओर करना चाहिये. बालों से चिपकी हुई सूखी गोबर और मिट्टी को हटाने के लिये ब्रशिंग विपरीत दिशा में करनी पड़ती है. जानवर से दूरी पर खड़े होकर ब्रश पर पूरा जोर लगाकर सफाई करनी चाहिये. हर बार ब्रशिंग के बाद कलाई को मोड़ कर त्वचा से धूल व कचरा जो ब्रश पर जमा हो उसको निकाल दिया जाता है. पशु के चेहरे पर ब्रश का प्रयोग नहीं करना चाहिए उसे गीले खादी या अन्य के कपड़े से पोंछ लिया जाता है.
गायों को खरहरा करना क्यों है जरूरी
गौरतलब है कि गायें ज्यादातर अपने बदन को चाटती रहती हैं और इस क्रिया में शरीर का अधिक कचरा साफ हो जाता है. फिर भी गाय को दूहने से पहले सदैव खरेरा किया जाना चाहिए जिससे कि दूध में धूल न गिरे. गाय को खरेरा पुट्ठा में, जांघों के अन्दर और पूंछ के नीचे भाग पर किया जाता है. इसके अलावा थनों को हल्के गरम पानी से जिसमें कि कोई उपयुक्त पूतिरोधी (ज्यादातर क्लोरीन ग्रुप) मिला हो उससे धोना जरूरी है. थन को उबले पानी से निकाले गये गीले कपड़े से पोंछना चाहिये. जिससे अनावश्यक पानी दूध के बर्तन में न गिरे। थन को थोड़ा नम रखना चाहिये जिससे सूखी धूल इत्यादि न गिरे. ये सब क्रियायें दूध दूहने के तुरन्त पहले की जानी चाहिये.
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