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World Tortoise Day: चंबल में बसा है कछुओं का संसार, जानिए दुर्लभ प्रजाति के कछुओं के बारे में

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली. आज विश्व कुछआ दिवस है. हम आपको बताएंगे कि कछुओं ने अपना संसार कहा और कैसे बसा लिया है. कौन-कौन सी दुर्लभ प्रजातियां यहां पर रहती हैं. कछुओं ने उत्तर प्रदेश के आगरा के बाह-पिनाहट से लेकर इटावा चंबल अभयारण्य जलीय जीव कछुओं की शरणस्थली बन गई है. यहां दुर्लभ प्रजाति के कछुओं की नई दुनिया बसा ली है. बाह से लेकर इटावा तक छह हजार से ज्यादा कछुए चंबल नदी में हैं. पानी में इनकी अठखेलियां सैलानियों के मन को भाती हैं. घड़ियालों की पीठ पर बैठकर कछुओं की सवारी विदेशों में चर्चित है. इस दृश्य को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी पहुंचते हैं.के बाह-पिनाहट से लेकर इटावा चंबल अभयारण्य जलीय जीव कछुओं की शरणस्थली बन गई है. यहां दुर्लभ प्रजाति के कछुओं की नई दुनिया बसा ली है. बाह से लेकर इटावा तक छह हजार से ज्यादा कछुए चंबल नदी में हैं. पानी में इनकी अठखेलियां सैलानियों के मन को भाती हैं. घड़ियालों की पीठ पर बैठकर कछुओं की सवारी विदेशों में चर्चित है. इस दृश्य को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी पहुंचते हैं.

मई के महीने में कछुओं का कुनबा बढ़ रहा है. इनके अंडों से नवजात बच्चे बाहर आ रहे हैं. इटावा रेंज के तीन स्थानों पर कछुओं के 278 अंडे हैं. इनमें से बच्चों का निकलना शुरू हो गया है. साल 2008 से चंबल अभयारण्य में जलीय जीवों की नेचुरल हैचिंग हो हरी है. यहां दुर्लभ प्रजाति के घड़ियाल के साथ-साथ कछुओं की बड़ी संख्या है. बाह रेंज में 3,500 से अधिक कछुए हैं तो इटावा रेंज में 2,500 से अधिक कछुओं का संसार है. चंबल में सीम, साल बटागुर, पचपेड़ा, कटहेवा, घोंड, इंडियन स्टार, मोरपंखी, सुंदरी, ढोर व काली ढोर प्रजाति के कछुए हैं. सर्दियों के सीजन में ये कछुए नदी के तट पर धूप सेकने के लिए आते हैं. कछुए घड़ियाल की पीठ पर बैठकर चंबल की सैर करते हैं. हर कोई इनके दृश्य को देखने के लिए आतुर होता है.

कछुओं के नवजात अंडों से बाहर आना शुरू हो गए
चंबल वाइल्डलाइफ की डीएफओ आरुषि मिश्रा बताती हैं कि मई के महीने में कछुओं के नवजात अंडों से बाहर आना शुरू हो गए हैं. कछुओं ने इटावा रेंज के बरचौली, कुंदौल, बछेती, पाली, बरेछा, में अंडे रखे थे. यहां तीन स्थानों पर 12 घोंसलों रखे थे, जिसमें से 278 अंडों की गिनती हुई थी. 16 घोंसले में अंडों की गिनती इसलिए नहीं हो पाई कि उनकी खुदाई करनी पड़ती. ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें छेड़ा नहीं गया. उन्होंने बताया कि बाह रेंज में भी कछुओं ने कई स्थानों पर अंडे रखे थे, जिनके बच्चे बाहर निकल रहे हैं. पानी में अठखेलियां इनकी शुरू हो गई हैं.

वन विभाग के अलावा एनजीओ भी करती है दूखभल
मगरमच्छ के अंडों की निगरानी के लिए वन विभाग के साथ-साथ एनजीओ भी बीहड़ में लगी हुई हैं. ये अंडों की निगरानी हर समय करती हैं. इनके अंडों को सियार का बड़ा खतरा होता है. महक लगने के बाद वे तत्काल उन्हें नष्ट कर देते हैं. इसके लिए वन विभाग की टीम निरंतर गश्त करती हैं. उन्होंने बताया कि अंडों से बाहर आने वाले बच्चों को इस बार विभागीय निगरानी में नदी में उतारा गया है. ताकि, बच्चों की असल संख्या का अंदाजा स्थान के आधार से लगाया जा सके.

नदी को साफ करने में निभाते हैं अहम भूमिका
पर्यावरण प्रेमी बताते हैं कि कछुओं की भूमिका नदी को साफ रखने में अहम होती है. ये नदी में फेंके गए मांस और अपशिष्ट उत्पादकों को खाकर पानी को स्वच्छ बनाए रखने में भूमिका निभाते हैं. एक समय ये था कि आगरा की यमुना में बड़ी संख्या में कछुए पाए जाते थे लेकिन, धीरे-धीरे इनकी संख्या यहां कम होती चली गई. तस्कर भी सक्रिय हो गए. बाद में वन विभाग की चौकसी बढ़ी. नदी के गंदे पानी के कारण वे गिनारा कर गए.

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