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कैसे जीरा साइज से 2 से 3 किलो तक तैयार हो जाती है मछली, आइए जानते हैं पूरा प्रोसेस

नई दिल्ली. बात चाहे दिल्ली एनसीआर की हो या फिर अधिकतर इलाकों की लोगों अपनी खाने की थाली में दो से तीन किलो तक की मछलियों खाना पसंद आती है. हालांकि इन मछलियों का सफर जीरा साइज के बीज से शुरू होता है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिन मछलियों को आप बड़े चाव से खाते हैं उनका साइज एक जीरा के बराबर होता है और इन्हें हैचरी फिर तालाब में खुराक दी जाती है. इसके बाद यह तैयार होकर डेढ़ से 2 किलो और 3 किलो तक की तैयार हो जाती हैं. हालांकि अगर तालाब में 100 बीज डाला जाए तो उसमें से सिर्फ 25 से 35 फीसदी ही मछली बन पाती हैं.

बता दें कि मछली कई तरह से पलती है. नदी, समुद्र में तो मछलियां खुद से पलती हैं लेकिन इसके अलावा तीन और तरीकों से मछलियों को पाला जाता है. हैचरी से बीज लाकर उन्हें मार्केट की डिमांड के हिसाब से उसे खास वजन तक तैयार किया जाता है. जबकि नदी में जल डालकर घर खेत में टैंक बनाकर और तालाब में मछली पालन किया जाता है. देश में अलग-अलग इलाकों में लोग अपने खाने की पसंद के मुताबिक मछली की वैरायटी को चुनते हैं. नॉर्थ इंडिया की बात की जाए तो फिश करी के लिए खास तौर पर रोहू, कतला और नैनी बहुत ज्यादा लोगों को पसंद आती है. वहीं फ्राई के लिए वो मछली पसंद की जाती है जिसमें फैट कम होता है.

हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार येलांका का कहना है कि मछली पालने के लिए कोलकाता और आंध्र प्रदेश के अलावा दूसरी जगह की हेचरी में भी बीज तैयार किया जाता है. उन्होंने बताया कि तीन तरह के साइज में सबसे ज्यादा जीरा साइज बीच की डिमांड रहती है. इसके एक पैकेट में एक हजार बीज होते हैं. इस बीच को आप सीधे लाकर तालाब में भी डाल सकते हैं लेकिन ऐसा करने पर बीज का सक्सेस रेट 25 फ़ीसदी तक ही सीमित रह जाता है. वही बड़ी संख्या में तो बीज ट्रांसपोर्ट के दौरान भी खराब हो जाते हैं.

मछली पलक एचडी खान बताते हैं कि अगर हैचरी से बीज लाकर पहले उसे नर्सरी में डाला जाता है तो 35 से 40 फीसदी तक इसमें कामयाबी मिल जाती है. 3 से 6 महीने तक बीज को नर्सरी में रखा जाना चाहिए. इस दौरान जीरा साइज का बीच फिंगर साइज या फिर 100 ग्राम तक हो जाता है. इस साइज के बीच को आप फिर तालाब में ट्रांसफर कर सकते हैं. नर्सरी में रखने के दौरान बीज को सरसों की खल और चावल के छिलके का चूरा खिलाया जाना चाहिए. ऐसा करने से मछली बीमारी से दूर रहती है. या यूं कहें कि उसे बीमारियां कम लगती हैं.

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