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एक ओर रोड पर बेसहारा हैं गायें तो वहीं यूपी की इस गौशाला में हर दिन 40 लाख रुपये खर्च होता है

नई दिल्ली. देश के अलग-अलग हिस्सों खासकार के उत्तर प्रदेश की सड़कों पर आप हर रोज ही छुट्टा गाय-बैल और बछड़े घूमते हुए देखते ही होंगे. इसमें से अधिकतर गायें ऐसी होती हैं, जब वो दूध देना बंद कर देती हैं तो लोग उन्हें छोड देते हैं. इसके बाद ये बे मुंह के जानवर बेसहारा हो जाते हैं. कभी एक्सीडेंट होता है तो उनकी मौत हो चुकी है जबकि कई बार आम जनता भी इसकी चपेट में आती है. यूपी सरकार ने जिलों में नगर पालिका को छुट्टा पशुओं को पकड़कर शेल्टर में पहुंचाने की जिम्मेदारी दी है लेकिन ये नाकाफी है. वहीं दूसरी ओर मथुरा के बरसाना में बनी गौशाला गाय-बैल और बछड़ों के लिए आसरा बनी है. यहां 60 हजार से ज्यादा चौपाये हैं. इस गौशाला का रखरखाव रमेश बाबा के निर्देशन में होता है. गौशाला में गायों के खाने-पीने पर हर रोज 40 लाख रुपये खर्च होते हैं.

इस गौशाला के बारे में 55 ट्रैक्टर और पांच जेसीबी लगातार चलती ही रहती है. कभी ट्रैक्टर से भूसा और हरा चारा एक शेड से दूसरे शेड में लाया जाता है तो कभी ट्रैक्टर से चारा मिक्चर मशीन को गायों के शेड तक पहुंचाता है. यहां मिक्चर से तैयार हुआ चार गायों के सामने डाला जाता है. पांच जेसीबी लगातार गौशाला के काम को निपटाती रहती हैं. कभी गायों के शेड से गोबर जमा करती है तो कभी भूसा ट्रैक्टर में लोड करने का काम जेसीबी से होता है. इसके अलावा सूखा दाना एक शेड से मिक्चर प्लांट तक भी लाने का काम जेसीबी के जिम्मे होता है.

गौशाला की सेवादार ब्रजेंद्र शर्मा का कहना है कि इस वक्त 300 से ज्यादा कर्मचारी यहां पर काम कर रहे हैं. कोई वाहनों को चल रहा है तो कोई गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम करता है. जबकि बहुत से कर्मचारी शेड की सफाई भी करते रहते हैं. किसी की ड्यूटी कुछ गायों को दूध निकालने की होती है तो किसी का काम दूसरा है. कर्मचारी गौशाला में रहकर ही काम करते हैं. ब्रजेंद्र शर्मा का कहना है कि जिस तरह का अब गायों के साथ व्यवहार किया जा रहा है उसे देखते हुए गौशाला में बड़ा अस्पताल भी बना दिया गया है.

सेवादार शर्मा ने बताया कि भूसा, हरा चारा और दाना में मिनरल्स मिलाकर एक गाय-बैल और बछड़े को करीब 8 किलो खाना चाहिए होता है. इसका हिसाब किया जाए तो गौशाला में रोजाना 5 लाख किलो तक चारा की आवश्यकता है. इस चारे में भूसा, हरा चारा, मक्का, बाजारा, जौ, खल, 3 हजार रुपये किलो से लेकर 5 हजार रुपये किलो के रेट वाले विटामिन दिया जाता है. रोजाना ही 30 से 40 हजार रुपये के विटामिन गायों को दिया जाता है.

ब्रजेन्द्र शर्मा का कहना है कि गौशाला में 60 हजार से ज्यादा गायों की देखभाल करने के लिए 300 से ज्यादा कर्मचारी हैं. डीजल से चलने वाले कई तरह के वाहन भी गौशाला की साफ-सफाई और चारे का इंतजाम करने में दिन-रात लगे रहते हैं. गायों का पेट भरने के लिए हरा चारा, भूसा, चूनी, खल और दूसरी चीजें उन्हें खिलाई जाती हैं. जिन पर रोजाना 40 लाख रुपये से ज्यादा खर्चा आता है. गौशाला में ही ओपीडी, आपेशन थिएटर, पैथोलाजी लैब, अल्ट्रासाउंड और एक्सरे सेंटर भी बनाया गया है.

वहीं गोसेवक राधाकांत शास्त्री कहते हैं कि सर्दी और बरसात के मौसम में गायों के लिए हरा चारा तो आसानी से मुहैया हो जाता है लेकिन गर्मियों में होती है. इस वक्त हरा चारा उपलब्ध है और इसे भूसे के साथ गायों को मिलाकर दिया जाता है. हर रोज गौशाला में टनों के हिसाब से हरा चारा लाया जाता है. जिसे कटाई के बाद गायों को खिलाया जाता है. जरूरत पड़ने पर मटर कंपनी, सहारनपुर और बरेली से मटर के छिलके और दूसरे जिलों से गन्नाा (ईंख) भी मंगाना पड़ता है.

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