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Cow Farm: बेहद खास है मथुरा की ये गोशाला, बिना बिजली के रोशनी, ऑर्गेनिक खाद भी बनती है

ब्रुसेलोसिस ब्रुसेला बैक्टीरिया के कारण होता है जो मुख्य रूप से पशुधन (जैसे गाय, भेड़, बकरी) में पाए जाते हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के मथुरा के बरसाना में श्रीमती गौशाला की गायों की पहचान दुनिया भर में बिल्कुल अलग है. यहां बना गायों का शेड उनका अस्पताल, किचन समेत सब कुछ गायों पर समर्पित नजर आएगा. जबकि गायों की सेवा के लिए यहां पर कर्मचारियों की तैनाती की जाती है. जबकि गोबर से ही गौशाला को रात में रोशन किया जाता है. इतना ही नहीं बीमार गायों की किचन में उनका खाना भी गोबर ऐसे ही बनाया जाता है. इसके लिए गौशाला में एक बड़ा बायो गैस प्लांट भी लगा हुआ है.

एक्सपर्ट कहते हैं कि मौजूदा दौर में गोबर से सीएनजी भी बनाई जा रही है. एक आंकड़े के मुताबिक 40 टन गोबर की यदि क्षमता हो तो प्लांट में 750 से 800 किलो तक सीएनजी को तैयार किया जा सकता है. जबकि इस तरह का प्लांट गुजरात में अमूल कंपनी भी चल रही है. वहीं हरियाणा की वीटा डेयरी कंपनी भी नारनौल में एक ऐसे ही प्लांट को शुरू करने वाली है. खास बात यह है कि सीएनजी बनाने के साथ ही बचे हुए लिक्विड गोबर से ऑर्गेनिक डीएपी भी बनाई जा सकती है.

35 टन गोबर से रोशनीः आपको बता दें कि 35 टन गोबर से रोशन होने वाली गौशाला में 275 एकड़ एरिया में बनाई गई है. लगभग 60 हजार के करीब गायों की सेवा यहां पर की जाती है. इसका संचालन पदम श्री रमेश बाबा करते हैं. गौशाला की सेवादार बृजेंद्र शर्मा का कहना है कि इस वक्त 60000 के करीब वहां गाय हैं. हर रोज लगभग 35 टन गोबर निकलता है. इसी गोबर को गौशाला में बने बायोगैस प्लांट तक पहुंचा दिया जाता है और वहां गैस बनाई जाती है. जिससे गौशाला में लगी 50-50 किलो वाट के दो जनरेटर चलाए जाते हैं. बताया गया की 35 टन गोबर से बनी गैसे से दो जनरेटर 9 से 10 घंटे तक चलाए जाते हैं. जैसे ही बिजली चली जाती है तो जनरेटर का सहारा लिया जाता है.

मौसम के हिसाब से खानपानः बृजेंद्र शर्मा ने ये भी बताया कि अस्पताल में हर वक्त करीब 500 बीमार गाय और बैल बछड़े भर्ती रहते हैं. यह वह हैं जो चारा नहीं खा पाती हैं. इसके लिए मौसम के हिसाब से दलिया बनाया जाता है. सर्दी में ज्वार, बाजरा आदि की दलिया बनाया जाता है. तो गर्मियों में गेहूं का दलिया बनाया जाता है. इसके लिए बाकायदा तौर पर बड़े-बड़े कड़ाहे यहां मौजूद हैं. इनकी भट्टी जलाने के लिए भी गोबर गैस का इस्तेमाल ही किया जाता है.

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