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Fisheries: मथुरा के किसान मछली पालकर बढ़ा रहे आय, एक साल में किया 29 सौ क्विंटल मछली का उत्पादन

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मछलियों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली पालन लगातार बढ़ता जा रहा है. अब किसान खेती के साथ मछली पालन को भी आमदनी का जरिया बना रहे हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के मथुरा में भी मछली पालन के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने लगा है. जिले के 167 मछली पालक किसान रोहू, कतला, नैन, ग्रास कॉर्प, कॉमन कॉर्प और पंगेसियस प्रजाति की मछलियों को पालकर अपनी अजीबिका को चलाने के साथ ही अपनी आर्थिक स्थिति को भी ठीक कर रहे हैं. मथुरा जिले में पाली जाने वाली इन मछलियों की डिमांड दिल्ली और फरीदाबाद में खूब हो रही है. यही वजह है कि बीते एक साल में मछली पालकों ने करीब 29 लाख रुपये की मछलियां एनसीआर में बेच दी. किसानों का कहना है कि अब ये डिमांड लगातार बढ़ रही है.

मछली पालन किसानों की आय को दोगुना करने का एक बेहतरीन जरिया भी है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में ग्रामीण इस व्यवसाय की तरफ रुख भी कर रहे हैं और उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है. मछली पालन में नई-नई तकनीक भी आ चुकी है. इस वजह से कम पैसे और कम मेहनत में ज्यादा लाभ मिल रहा है. इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के किसानों ने सेट कर दिया है. इस जिले के किसान अब मछली पालन की ओर से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, यही वजह है कि उन्हें इसमें अच्छी-खासी कमाई भी हो रही है.

एक साल में किया 2900 क्विंटल मछली का उत्पादन
मथुरा जिले की बात करें तो सितंबर 2022 से सितंबर 2023 तक जनपद में 2900 क्विंटल मछलियों का उत्पादन किया गया. एक साल में दिल्ली और फरीदाबाद में करीब 29 लाख रुपये की मछलियां बेची गई हैं. मछली पालकों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 40 से 60 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही है. मत्स्य इंस्पेक्टर बीपी सिंह ने बताया कि वर्ष 2020 में 59 लोगों को, वर्ष 2021 में 6 लोगों को, वर्ष 2022 में 66 लोगों को और वर्ष 2023 में 36 लोगों को सरकारी योजना के तहत अनुदान दिया गया है.

10 से 12 महीने में तैयार हो जाती हैं मछली
बहुत से लोगों के मन में एक सवाल रहता है कि तालाब में बीच डालने के बाद बेचने लायक कब होती है. इसे कब खाया जा सकता है. और इसे कितना बढ़ा किया जाए, जिससे इसके अच्छे दाम मार्केट में मिलें तो इन सभी सवालों पर एक्सपर्ट बताते हैं कि जब मछली का वजन 1.5 से 2 किलो हो जाए तो ये खाने लायक तैयार हो जाती है. करीब 10-12 महीने के अंदर मछली का वजन 2 किलोग्राम हो जाता है.

मथुरा जिले में तालाबों की संख्या करीब 641
किसानों की रुचि मछली पालने की ओर लगातार बढ़ रही है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में ग्रामीण इस व्यवसाय की तरफ रुख भी कर रहे हैं और उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है. मथुरा जनपद की बात करें तो तालाबों को संख्या 641 है. इनमें से 154 निजी तालाब हैं, 100 तालाब ग्राम सभा के हैं, जिन्हें पट्टे पर देकर मछली पालन कराया जा रहा है.एक हेक्टेयर के तालाब में साल भर में 38 से 40 क्विंटल मछली का उत्पादन हो जाता है.

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