नई दिल्ली. मछली पालन कर रहे किसानों को ये मालूम होना चाहिए कि जब मछली बीमार होती है तो उन्हें कैसे मालूम होगा. एक्सपर्ट के मुताबिक मछलियों में रोगों के शुरुआती चेतावनी लक्षण में आम तौर पर पाली जा रही मछलियों के व्यवहार में बदलाव होता है. आहार लेने की प्रतिक्रिया में कमी होती है. जबकि मोरबीडिटी एवं मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है. ज्यादातर मामलों में, दो या अधिक कारक जैसे जल की गुणवत्ता एवं रोगजनकों में बदलाव, रोगों का कारण होता है. इनमें से प्रत्येक कारकों में सुधार किया जाना चाहिए.
तालाब के जल की गुणवत्ता एवं प्रबंधन रिकॉर्ड की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए एवं संबंधित समस्या में सुधार किया जाना चाहिए. इसके साथ ही पोषण कार्यक्रमों की जांच, आहार भंडारण का मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि आहार का भंडारण सही तरीके से किया गया है. बीमार मछली के प्रतिनिधि नमूनों को ऊतकक्षय शव परीक्षा के लिए लिया जाना चाहिए. मृतक परीक्षा में असामान्यता पाये जाने पर सभी ऊतकों की परीक्षण बाहरी और आंतरिक परजीवियों की खोज, तथा जीवाणु व विषाणु (यदि जरूरी हो) की खोज को शामिल किया जाना चाहिए. सभी वांछित जांच से मिले परिणामों के आधार पर जरूरी उपचार किया जाना चाहिए.
रोग समस्याओं का प्रबंधन
हालांकि मत्स्यपालन से बीमारियों को पूरी तरह से दूर रखना मुश्किल है. परन्तु काफी हद तक नियंत्रित करना अथवा बार-बार होने से रोकना संभव है. अत: मत्स्य प्रक्षेत्र में अच्छे प्रबंधन से रोगजनकों की संख्या में कमी अथवा इनका उन्मूलन करने हेतु रसायनों का उचित प्रयोग करना चाहिए. किसी फील्ड में नए मछली को लाने उपरान्त जैव सुरक्षा उपाय न केवल महत्वपूर्ण होते हैं. वरना ये उपाय विशिष्ट रोगजनको की समग्र संख्या में कमी लाने के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं. इनके कारण एक प्रक्षेत्र से अन्य मत्स्य प्रक्षेत्रों में रोगाणुओं के प्रसार को रोकने में काफी हद तक मदद मिलती है.
प्रसार को रोका जा सकता है
बीमार एवं मृत मछली अक्सर रोगों के विस्तार के प्रमुख कारण होते हैं. अतः, बीमार, मृतप्राय तथा मृत मछली को मत्स्य प्रक्षेत्र से यथाशीघ्र हटाकर नष्ट कर देना आवश्यक होता है. तालाब का जल भी रोगजनकों के संग्रह के रूप में कार्य कर सकता है. मत्स्य प्रक्षेत्र में उपयोगित जाल, बाल्टी व अन्य उपकरण भी रोग के वाहक हो सकते हैं. इसलिए इन्हें भी उपयोग उपरांत विसंक्रमित किया जाना चाहिए ताकि रोगजनकों के यथासंभव प्रसार को रोका जा सके.
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