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नौकरी छोड़ी, दो लाख से शुरू किया स्टार्टअप, पांच साल में ही खड़ा कर दिया करोड़ों रुपये का टर्नओवर

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रूपेश कुमार और उनका तालाब.

नई दिल्ली. कुछ लोगों का सोचना है कि सिर्फ खेती करके ही कमाई की जा सकती है और खेती के साथ दूसरा काम नहीं किया जा सकता, लेकिन ऐसा सोचना गलत है. अगर खेती के साथ पशुपालन, मुर्गी, बत्तख पालन करेंगे तो डबल कमाई होगी. अगर आप सिस्टम के तहत काम करेंगे तो सरकार भी इसमें मदद करती है. केंद्र और प्रदेश सरकारें भारी छूट के साथ लोन देती हैं, जिससे पशुपालक या किसान फार्म खोलकर मोटी कमाई कर सकते हैं. यही वजह है कि बिहार के बांका में ऐसे कई किसान हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती के साथ ही मछली, मुर्गी और बत्तख पालना शुरू कर आज बेहतरीन जीवन जी रहे हैं. इन किसानों में से भी बांका जिले में फुल्लीडुमर प्रखंड स्थित रजवाड़ा गांव के रूपेश हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती के साथ ही एक साथ मुर्गी, मछली और बत्तख पालकर करोड़ों रुपये की कमाई करने में लगे हैं. रूपेश ने बताया कि साल का टर्नओवर 8-10 करोड़ रुपये है

देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. खासतौर पर अगर हम ग्रामीण परिवेश की बात करें तो पशुपालन के जरिए से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय किसान, पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाती है. बांका जिले में फुल्लीडुमर प्रखंड स्थित रजवाड़ा गांव के रूपेश हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती के साथ ही एक साथ मुर्गी, मछली और बत्तख पालकर लाखों रुपये की कमाई करने में लगे हैं. रूपेश कुमार पहले दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. रूपेश ने बताया कि दिल्ली में एक टेलीकॉम कंपनी में काम करते थे लेकिन कोरोना से एनवक्त पहले कंपनी ने छंटनी करना शुरू कर दिया तो मैं खुद ही नौकरी छोड़कर अपने गांव में चले आए. इसके बाद प्लानिंग के तहत काम किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2019 में ही कोरोना और इसके बाद लॉकडाउन भी लग गया, जिससे आर्थिक स्थिति खराब हो गई. इसके बाद उन्होंने मछली, मुर्गी और बत्तख पालने का काम शुरू किया. रूपेश कुमार सिंह ने बताया कि आईएमसी और सीजन प्रजाति की मछलियों का पालन कर रहे हैं. एक ही खर्चे में आईएमसी और सीलन दोनों तैयार हो जाता है.

बत्तख पालने में है कई तरह से लाभ
रुपेश सिंह ने बताया कि मेरे दिमाग में ये प्लान यूट्यूब पर मछली पालन का तरीका देखकर आया. इसके बाद पुस्तैनी पांच एकड़ में से ढाई बीघे में तीन तालाब खुदवाए, जिसमें आईएमसी और सीलन मछली का पालन करने लगे. कुछ दिनों बाद ही तालाब में आक्सीजन की कमी होने लगी. इस परेशानी से निजात पाने के लिए एक दोस्त ने बत्तख पालने की सलाह दी. इस पर बत्तख पालना शुरू कर दिया. पहली बार में 60 बत्तख खरीदकर तालाब में छोड़ दीं, जिससे आक्सीजन का लेबल बढ़ गया. साथ ही तालाब की गंदगी भी कम होने लगी. इतना ही नहीं मछली का वजन बढ़ गया. साथ ही तालाब के किनारे देसी मुर्गी पालना शुरू कर दिया, जिससे अच्छी कमाई हो रही है.

10 लाख रुपये की हो जाती है कमाई
रूपेश बताते हैं कि कॉमर्शियल परपज से बत्तख पालन बेहद शानदार काम है. बत्तख छह-सात महीने बाद अंडा देना शुरू कर देती है. अगर अंडे की कीमत की बात करें तो बाजार में एक अंडा 20 रुपये के हिसाब से जाता है. वही बत्तख 400.500 रुपये प्रति जोड़े में जोड़े में बिक जाता है. देसी मुर्गे का डिमांड बहुत है. लागत भी कम आती है. 700-800 रुपये प्रति जोड़े के हिसाब से बिक जाता है. मछली, बत्तख और मुर्गी पालन से सालाना 10 लाख से अधिक की कमाई हो जाती है.

अंडा प्लांट भी खोलना चाहते हैं रूपेश
रूपेश मछली, बत्तख और मछली पालने के साथ अब आगे कुछ और भी करना चाहते हैं. रूपेश का आगामी प्लान अंडा प्लान डालने का है. उन्होंने बताया कि अब मैं अडे का प्लांट डालना चाहता हूं. हालांकि इसके लिए मोटी रकम की जरूरत होगी. जब इसके लिए रकम का इंतजाम हो जाएगा तो 8-10 हजार अंडों का प्लांट डालेंगे. अभी मेरा पूरा फोकस अपने तालाब पर ही है. उन्होंने बताया कि मछली, मुर्गी और बत्तख को बेचने के लिए मुझे कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती, लोकल वेंडर ही फार्म से मछली, मुर्गी और बत्तख ले जाते हैं.

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