Home पशुपालन LDS: देशभर में 61 जिलों के करोड़ों पशुओं पर लंपी का खतरा, जारी हुई वार्निंग, ​पढ़ें कैसे करें बचाव
पशुपालन

LDS: देशभर में 61 जिलों के करोड़ों पशुओं पर लंपी का खतरा, जारी हुई वार्निंग, ​पढ़ें कैसे करें बचाव

Disease in animals, Animal sick, Animal fever, Animal heat stroke, Animal husbandry, Sri Ganganagar Veterinary Hospital, Animal Husbandry,
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुपालन के लिए आने वाला में महीना अच्छा नहीं माना जा रहा है. दरअसल आने वाले महीने में पशुओं में कई गंभीर बीमारियों के प्रसार का अंदेशा जाहिर किया जा रहा है. पशुपालन को लेकर काम करने वाली निवेदी संस्था की ओर से जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक मई महीने में पशुओं में एलसीडी यानी लंपी रोग फैलने का खतरा बहुत ज्यादा है इस बीमारी से बचाव के लिए पशुपालकों को जरूरी कदम उठाने की सलाह भी दी गई है. अगर वक्त रहते पशुपालक कौन है कम नहीं उठाया तो उनके सामने मुश्किल हो सकती है. आंकड़ों के मुताबिक देशभर के 61 जिलों में इस खतरनाक बीमारी के फैलने का खतरा है.

लंपी रोग के बारे में बात की जाए तो ये आमतौर पर गाय एवं भैंसे कैप्रीपॉक्स नामक संक्रामक के कारण होता है. पशुओं में एक ऐसा रोग है, जिससे पशु दुबलेपन के शिकार हो जाते हैं. उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है. जबकि विकास भी रुक जाता है. इसके अलावा बांझपन गर्भपात और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है. बुखार की शुरुआत वायरस से संक्रमण के लगभग एक सप्ताह के बाद होती है. शुरू में ये 41 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है और एक सप्ताह तक या बना रहता है.

किस राज्य के कितनों जिलों में खतरा
बात की जाए आंकड़ों की और किस राज्य में कितने जिलों में इस रोग के प्रसार का खतरा है तो सबसे ज्यादा कर्नाटक में खतरा है. कर्नाटक के 10 जिलों इस रोग के प्रसार का खतरा जाहिर किया गया है. वहीं अरुणाचल प्रदेश में दो जिलों में, असम में 7 जिलों में, बिहार में दो, हिमाचल प्रदेश में एक, हरियाणा में एक, गुजरात में चार, झारखंड में आठ, केरल में छह, मध्य प्रदेश में तीन, नागालैंड में दो, पंजाब में एक, राजस्थान में तीन, सिक्किम में एक, तेलंगाना में एक और उत्तराखंड में 9 जिलों में फैलने का खतरा है. वहीं उत्तर प्रदेश में इस रोग के फैलने का खतरा नहीं है.

क्या है बचाओ नियंत्रण का तरीका
बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. जिन गांवों में बीमारी फैली हुई है, वहां बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से के संपर्क में आने से बचना चाहिए. यह बीमारी मच्छर, मक्खियों चिड़िया द्वारा फैलती है. उनके आवास में साइपिमैथिीन, डेल्टामैविन, अवमतिाज़ दवाओं दो मिली प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं का आवागमन बंद कर देना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए. बीमारी फैलने की अवस्था में पशुओं को पशु पशु मेला इत्यादि में नहीं ले जाना चाहिए. पशुओं के प्रबंध में प्रयुक्त वाहन एवं उपकरण के साफ-सफाई करनी चाहिए. संक्रमित पशुओं की देखभाल में लगे व्यक्तियों को जैव सुरक्षा उपायों जैसे साबुन, सैनेटाइजेशन करना चाहिए. पशुओं के बाड़े में किसी भी अनावश्यक बाहरी व्यक्ति एवं वाहन के प्रवेश पर रोक लगा देनी चाहिए. पशुशाला में नियमित चूना पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. पशु आवास में गोबर मूत्र अपनी गंदगी आदि को गत्रित नहीं होने देना चाहिए. पशु के दूध का उपयोग उबालकर करना चाहिए रोगी पशु की संतुलित आहार हरा चारा दलिया गुण आदि खिलाए जिससे कि पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो.

इस तरह करें उपचार
उपचार की बात की जाए तो यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए इसकी कोई सटीक दवा नहीं है. सर्वप्रथम रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. पशु चिकित्सा की सलाह लेनी चाहिए. इससे बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवा और बुखार एवं सूजन के लिए एंटीपायरेटिक एंटी इंफ्लामेटरी एवं मल्टीविटामिन दवाएं 4 से 5 दिन तक लगवानी चाहिए. पशु की भूख बढ़ाने के लिए हिमालयन बतीसा पाउडर रुचामेक्स पाउडर आदि हर्बल दावों का प्रयोग किया जाना चाहिए. यदि त्वचा पर जख्म बन जाए तो जख्मो पर नियमित रूप से बीटाडीन एवं एंटीसेप्टिक दवा का स्प्रे करना चाहिए. जख्मों के उपचार के लिए कुछ हर्बल दवाएं टॉपिक्योर, स्कैवोन, चार्मिल, हाइमेक्स आदि बाजार में मिल जाती है.

पशुओं की मौत हो जाए तो क्या करें
इस रोग से मृत पशुओं को गहरे गड्ढे में चूना एवं नमक डालकर दबा देना चाहिए. तथा ऐसे पशु को खुले में नहीं फेंकना चाहिए. क्योंकि बीमारी इससे और अधिक फैल सकती है. मृत पशु को निस्तारण वाला स्थान लोगों के रिहायशी स्थान, पशु आवास एवं जल स्रोतों से दूर होना चाहिए. मृत पशुओं के परिवहन में प्रयुक्त वाहन पशु आवास को सोडियम हाइपोक्लोराइट सफाई करनी चाहिए. मृत पशु के चारे दाने को भी जलाकर नष्ट कर देना चाहिए. मृत पशु के स्थान को संक्रमण से दूर करने के लिए सूखी घास रखकर जला देना चाहिए.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

live stock animal news, Survey on farmers, farmers' income, farmers' movement, MSP on crops, Chaudhary Charan Singh Agricultural University, HAU, agricultural economist Vinay Mahala, expenditure on farming.
पशुपालन

Animal Husbandry: डेयरी पशुओं की इन चार परेशानियों का घर पर ही करें इलाज, यहां पढ़ें डिटेल

वैकल्पिक दवाओं की जानकारी पशुपालकों के लिए जानना बेहद ही अहम है....