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Dairy: डेयरी पशुओं को हो रही है हार्डवेयर बीमारियां, जानें क्या है वजह और इलाज के बारे में भी पढ़ें

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना में “डेयरी पशुओं में हार्डवेयर रोग” पर एक चर्चा का आयोजन किया तो एक बड़ी ही अहम बात निकलकर सामने आई है. यहां चर्चा में ये बात सामने आई कि पशुओं में हार्डवेयर बीमारी बढ़ रही हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि ये हाईवेयर बीमारी क्या है. तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हार्डवेयर बीमारी पशुओं के शरीर में कील, नट बोल्ट और तार आदि के कारण होती है. ये बीमारी तब होती है जब पशु चराई के दौरान इन चीजों को किसी चीज के साथ खा लेते हैं.

वहीं इस दौरान इससे बचाव के तरीकों पर भी चर्चा हुई. बताया गया कि जब हार्डवेयर बीमारी होती है तो पशु के पेट के अंदर चुंबक रखकर इसका इलाज किया जाता है. एक्सपर्ट ने बीमारी होने की वजह की ओर भी इशारा किया और कहा कि लगातार मशीनीकरण के कारण इस रोग से खासतौर पर डेयरी पशु पीड़ित हो रहे हैं.

किसी वजह से होती है ये बीमारी
विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ ने कहा कि कृषि और डेयरी क्षेत्रों में खेती के बढ़ते मशीनीकरण के साथ-साथ निर्माण उद्योग डेयरी पशुओं में हार्डवेयर रोगों की बढ़ती घटनाओं का कारण है. वहीं पशु चिकित्सा शरीर रचना विज्ञान विभाग के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. देवेंद्र पाठक ने बताया कि डेयरी पशु खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं में अंतर किए बिना धातु की कील, तार, नुकीली वस्तुएं, टूटी हुई मशीन के पुर्जे आदि जैसी वस्तुओं को तेजी से खा जाते हैं. इसके चलते उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने एक मॉडल को पेश किया जिसके जरिए धातु की वस्तुएं डेयरी पशुओं के पेट के दूसरे भाग रेटिकुलम में फंस जाती हैं.

चुंबक जरिए किया जाता है इलाज
पशु चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अश्विनी कुमार ने बताया कि डेयरी पशुओं में हार्डवेयर रोग की घटना समय के साथ बढ़ी है. इस बीमारी के लक्षणों और उपचार के तरीके के बारे में बताते हुए कहा कि छह महीने से अधिक उम्र की सभी डेयरी गायों में निवारक उपाय के रूप में गाय चुंबक लगाया जाना चाहिए. यह गाय चुंबक रेटिकुलम, दूसरे पेट में खुद को जमा लेता है, और लोहे से बनी धातु की चीज को पकड़ लेता है. पशु चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. अरुण आनंद ने कहा कि अगर कोई धातु की वस्तु उनके डायाफ्राम या दिल की झिल्ली को छेद देती है, तो जानवरों के जीवन को बचाने के लिए सर्जरी करनी पड़ती है.

एक्सपर्ट बोले तेजी से बढ़ रहे मामले
पशु रोग अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डॉ. मंदीप सिंह बल ने भी इस बात पर सहमति जताई कि इस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, उन्होंने विश्वविद्यालय अस्पताल में आवश्यक निदान परीक्षणों और उनकी उपलब्धता पर प्रकाश डाला. डॉ. अमरप्रीत सिंह पन्नू, सीनियर पशु चिकित्सा अधिकारी, अमृतसर ने इस बीमारी के क्षेत्रीय परिदृश्य को उजागर किया और इस पहलू पर अपने अनुभव साझा किए. डॉ. जसविंदर सिंह, प्रोफेसर ने सफलतापूर्वक कार्यक्रम का समन्वय किया. शुरुआती जानकारी के बाद, पैनलिस्टों द्वारा प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर दिए गये. आखिरी में, डॉ. बराड़ ने चर्चा के विषयों को संक्षेप में प्रस्तुत किया और कहा कि विश्वविद्यालय राज्य के पशुपालकों को हर संभव माध्यम से मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है.

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