नई दिल्ली. पशुपालन में सबसे ज्यादा नुकसान गर्मियों में दूध उत्पादन कम होने और फिर पशुओं को बीमारी लगने से होता है. गर्मी में फिर भी तमाम उपाय करके दूध उत्पादन की कमी को पूरा किया जा सकता है लेकिन जब एक बार पशु बीमार पड़ जाता है तो फिर मुश्किलें बहुत बढ़ जाती हैं. क्योंकि पशुओं इससे सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है और पशुओं की अगर मौत हो जाए तो फिर मामला बहुत बिगड़ जाता है. मसलन एक पशुपालक की दुधारू भैंस बीमारी की वजह से मर जाए तो एक झटके में लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ जाता है.
यही वजह है कि बीमारी रोकने को लेकर सरकार भी वैक्सीनेशन की व्यवस्था कराती है. जबकि कई ऐसी बीमारियां, जिनके लक्षणों की जानकारी न होने के कारण पशुपालकों बहुत नुकसान होता है. पशु बीमार पड़ जाते हैं और लक्षण भी दिखते हैं लेकिन पशुपालकों को इस बारे में जानकारी न होने के कारण नुकसान उठाना पड़ जाता है. तमाम बीमारियों में से एक बीमारी सर्रा भी है. जिसे अंग्रेजी में ट्रिपेनोसोमियोसिस नाम से भी जाना जाता है. गाय और भैंस में ये बीमारी हो जाए तो बहुत बुरा असर डालती है.
बीमारी का क्या है लक्षण
एक्सपर्ट कहते हैं कि इस रोग का गाय-भैंस में इस बीमारी के आ जाने से कुछ मुख्य लक्षण दिखाई पड़ते हैं. जिसमें पहला है कि प्रभावित पशु में रूक-रूक कर बुखार आना शुरू हो जाता है. कभी बुखार उतर जाता है तो कभी तापमान ज्यादा हो जाता है. वहीं बार-बार पेशाब करने लग जाते हैं. इतना ही नहीं पशुओं में खून की कमी भी हो जाती है. पशु द्वारा गोल चक्कर लगाना, सिर को दीवार या किसी कडी वस्तु में टकराना. खाना-पीना कम कर देना, आँख एवं नाक से पानी चलने लगना भी इन पशुओं की बीमारी के लक्षण हैं. वहीं मुंह से भी लार गिरने लग जाती है.
गर्भपात की समस्या हो जाती है
इसके अलावा प्रभावित पशुका धीरे-धीरे अत्याधिक कमजोरी हो जाती है. कमजोर होते चले जाते हैं. संक्रमित दुधारू पशु का दुध उत्पादन बहुत ज्यादा कम हो जाता है. प्रभावित पशु का प्रजनन क्षमता में कमी एवं गर्भित पशुओं में गर्भपात होने की पूरी संभावना होती है. घोड़ों में रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, पैर एवं शरीर के निवले हिस्सों में जलीय त्वचा शोथ (इडीमा), पित्ती के जैसा फलक (अर्टिलेरियल प्लैक) गर्दन एवं शरीर के पार्श्व क्षेत्रों आदि लक्षण जाहिर होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर इस तरह के लक्षण दिखाई दें तो तुरंत ही पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए ताकि पशुओं को गंभीर अवस्था से बचाया जा सके.
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