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Fodder: फलों के बागों में इस तरह करें चारा उत्पादन, सालभर पशुओं के लिए मिलेगा हरा चारा, बढ़ेगा उत्पादन

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली. पशुपालन में तकरीबन 70 फीसदी खर्च उनकी खुराक पर आता है. जबकि बेहतर उत्पादन के लिए उन्हें भरपूर चारे की जरूरत होती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जहां पर बंजर भूमि ज्यादा हो और चारा उगाने के लिए जमीन की कमी हो वहां पर फलों के बागों मे पशुओं के लिए चारा उगाया जा सकता है, जो बदले में दूध और मांस की पूर्ति करता है. इससे चरने वाले पशुओं को न सिर्फ पौष्टिक चारा मिलता है बल्कि तेज धूप बेहद गर्मी वाले दिनों में जानवरों को एक प्राकृतिक आश्रय भी मिलता है.

उत्तर प्रदेश में, कृषि वानिकी में उगाई जाने वाली पेड़ों की प्रजातियों की पत्तियों का उपयोग आमतौर पर छोटे जुगाली करने वाले पशुओं और बड़े जुगाली करने वाले पशुओं के लिए चारे के रूप में किया जा रहा है. जिससे कम उत्पादन के दौरान चारे की कमी को दूर किया जा रहा है. मौजूदा बागों में चारा फसलों की खोती शुरू करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और कई अवसर हैं. बागवानी प्रणाली चारागाह में घास या फलियां और फलों के पेड़ों को एकीकृत करती हैं ताकि मध्यम रूप से उत्पादकता खो चुकी जमीन का उपयोग करके फल, चारा और ईंधन की लकड़ी की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा किया जा सके.

आम के बाग में लगाएं हरा चारा फसल
उच्च चारा उत्पादकता के लिए आंवला और अमरूद आधारित बागवानी प्रणाली विकसित की गई है. इस तरीके में आजमाई गई घासों में सेंचरस सिलिएरिस, स्टाइलोसेंथेस सीब्राना और स्टाइलोसेंथेस हैमाटा शामिल हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश में, विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 0.25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में आम की खेती की जाती है, जिसमें यदि चारा फसलों हाइब्रिड नेपियर घास, गिनी घास, बारहमासी ज्वार और स्टाइलोसेंथेस लगाया जाए तो भारी मात्रा में हरा चारा पैदा हो सकता है जो हमारे पशुओं की साल भर की हरे चारे की आवश्यकता को पूरा कर सकता है. आम तौर पर आम के पौधों के बीच की दूरी 10 बाई 10 मीटर होती है, जबकि चारा फसलों को लगाने के लिए सिर्फ ​7-8 मीटर की गैप वाली जगह की जरूरत होती है. इसलिए इन आम के बागों का उपयोग राज्य के अतिरिक्त चारा उत्पादन के लिए किया जा सकता है.

ऐसे करें चारा की खेती
IGFRI में विकसित बागवानी-चारागाह उगाने के तरीकों की बात की जाए तो बारिश पर आधारित क्षेत्रों की बंजर भूमि पर 6.5-12 टन डीएम प्रति हेक्टेयर से चारे का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. बागवानी-चारागाह तरीकों में मिट्टी के नुकसान को रोकने और नमी को संरक्षित करने के साथ-साथ चारा, फल और ईंधन की लकड़ी और ईकोलॉजी संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा कर सकता है. लंबे समय तक रोटेशन के बाद यह मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीव गतिविधियों में सुधार करता है. यह तरीका 2-4 ACU प्रति वर्ष का समर्थन करती है.

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