नई दिल्ली. मछली पालन में मछली के ज्यादा उत्पादन को बढ़ाने के लिए तालाब में मिट्टी और पानी में पाए जाने वाले जरूरी तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए खाद का इस्तेमाल किया जाता है. इससे मिट्टी और पानी में पाए जाने वाले तमाम जरूरी तत्व तालाब में खाद के जरिए आ जाते हैं. इससे मछलियों की ग्रोथ तेजी से होती है और बाद में उत्पादन भी अच्छा होता है. फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि जैविक खाद के उपयोग के 15 दिन के बाद रासायनिक खाद का मिश्रण भी डाला जाता है. इसमें यहां इस बात पर जरूरी ध्यान दें कि पानी का रंग साफ होने पर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. जबकि कम तापमान में रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
आपको बता दें कि रासायनिक खाद के तौर पर मछलियों के तालाब में किसान यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हीं का छिड़काव तालाब में किया जाता है. इसे मछलियों का विकास तेजी से होता है. साथ ही उनके वजन को बढ़ाने में भी मदद मिलती है.
एक हेक्टेयर में कितनी डालें खाद
तालाब में चूने का इस्तेमाल 350 से 500 किलोग्राम हर साल करना चाहिए. वहीं एक हेक्टेयर में मवेशियों का गोबर 10 टन डालना चाहिए. अगर वर्मी खाद डाल रहे हैं तो 5 टन का इस्तेमाल कर सकते हैं. रासायनिक खाद के तौर पर यूरिया 100 से 250 किलोग्राम एक हेक्टेयर में डाली जाती है. सुपर फास्फेट 150 से 200 किलो और जबकि म्यूरेट ऑफ पोटाश 80 से 200 किलोग्राम तक एक हेक्टेयर में डालना चाहिए. जबकि मछली पालन से पहले तालाब में 200 किलोग्राम चूने का इस्तेमाल किया जाता है. एक हेक्टेयर के तालाब में 7 दिन के बाद 5 हजार किलो गोबर की खाद डालनी चाहिए. गोबर की खाद के इस्तेमाल के बाद 15 दिन के बाद रसायनिक खाद डालें.
मछलियों को होती है ये दिक्कतें
फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि मछलियों की सबसे के लिए सबसे अच्छा तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस माना जाता है. जबकि ठंड में यह तापमान घटकर 10 डिग्री के नीचे तक चला जाता है. इस वजह से मछलियों को बेहद ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उनकी पाचन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है. सांस लेने में भी दिक्कत आती है. प्राकृतिक आहार पर भी बुरा असर पड़ता है. इसीलिए नियमित रूप से तालाब में ताजा पानी भरा जाता है. ताकि तालाब का टेंपरेचर बना रहे और मछलियों को किसी तरह की दिक्कत न आए.
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