नई दिल्ली. जब भी किसी भी मवेशी के पालने की बात आती है तो दिमाग में कुछ चीज आती है. जैसे गंदगी, स्मेल या बीमारियां. इसके चलते बहुत से लोग मवेशियों को नहीं पालते हैं, लेकिन आगरा में एक एक ऐसा फार्म खोला गया है जो बेहद ही हाईटेक है. पशुपालक डीके सिंह के द्वारा युवान एग्रो फार्म बनाया गया है, जिसे बनाकर उन्होंने साबित कर दिया कि मवेशियों ऐसे भी पाला जा सकता है कि न तो गंदगी होगी न ही उन्हें बीमारियां लगेंगी. असल में उन्होंने एक ऐसा गोट फार्म बनाया है जो भारत का नंबर वन फाइव स्टार गोट फॉर्म कहलाता है.
इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि इस फॉर्म को कैसे मेंटेन किया जा रहा है और कितनी अच्छी सुविधा बकरे-बकरियों के लिए हैं. बकरियों को क्या खिलाया जाता है. उनकी हैल्थ का कैसे ख्याल रखा जाता है और इससे किसानों को कैसे फायदा मिल रहा है.
एक हजार लीटर दूध का होगा उत्पादन
युवान गोट फॉर्म आगरा के संचालक डीके सिंह कहते हैं कि हमारे फार्म में 5000 से ज्यादा बकरियां हैं और 1 लाख स्क्वायर फीट से ज्यादा एरिया में बने शेड में ये बकरियां रहती हैं. तकरीबन 3 साल से फार्म चल रहा है और इस फॉर्म में बकरियों के देखभाल की जाती है. आने वाले समय में 1000 लीटर प्रतिदिन दूध का उत्पादन यहां होगा जिससे बकरियों के दूध से चीज बनाई जाएगी. गोट फॉर्म के संचालक का कहना है कि वह कोशिश कर रहे हैं कि ग्रामीण इलाकों से भी लोगों को जोड़ा जाए. क्योंकि इसका मार्केट बड़ा है, इससे फार्मर्स को भी फायदा मिलेगा.
किसानों की बढ़ाएंगे इनकम
डीके सिंह ने बताया की गोट फार्मिंग बहुत बड़ा मार्केट है. सरकार भी सपोर्ट कर रही है. इतना बड़ा फार्म बनाने की पीछे का मकसद यह है कि इस सेक्टर में ऑर्गेनाइज तरीके से काम किया जाए. अभी तकरीबन फॉर्म से 500 किसान जुड़े हुए हैं, जिसमें दो से 300 लोगों को रोजगार दिया जा रहा है. आने वाले दो-तीन सालों में 4 से 5 हजार किसानों को जोड़कर फायदा पहुंचाया जाएगा. इससे उनकी इनकम भी बढ़ेगी. सरकार भी यही चाहती है.
कई नस्ल की हैं बकरियां
फार्म में अभी सोजत, कोटा और अफ्रीकन बोर बकरियों को पाला गया है. इसके अलावा आने वाले दिनों में सिरोही, गुजरी और बीटल पर भी काम किया जाएगा. इन जानवरों को मिल्क प्रोडक्शन अच्छा होता है. इसलिए इन्हें आने वाले समय में पाला जाएगा. एक नया विंग बनाया जा रहा है, जिसमें 1000 मादा बकरियों को पाल जाएगा. यहां गुजरी, सिरोही और बीटल नस्ल की बकरियां रखी जाएंगी.
ज्यादा गर्मी होने पर भिगाकर खिलाते हैं भूसा
पानी के लिए कमर्शियल रो प्लांट लगाया गया है. इसलिए टीडीएस डेढ़ सौ मैनेज करके चलते हैं. इससे ज्यादा टीडीएस होने पर जानवरों की तबीयत खराब होने लगती है. शेड के अंदर भी पानी की टंकी लगाई गई है और एक बड़ी टंकी भी लगाई गई है. ताकि पानी की ज्यादा परेशानी न हो. बकरियों को फीड के तौर पर गर्मी के दिनों में बाजरा नहीं खिलाते हैं. जबकि गुड़ की मात्रा को थोड़ा सा बढ़ा दिया जाता है. जब टेंपरेचर 40 से 45 डिग्री के पार चला जाता है तो भूसे को भीगा कर खिलाते हैं.
तुरंत कराया जाता है इलाज
उन्होंने बताया कि शेड का टेंपरेचर मेंटेन करने के लिए 16 एमएम की इंसुलेटेड शीट लगाई गई है. इससे बाहर के मुकाबले अंदर का टेंपरेचर 4 से 5 डिग्री कम रहता है. हालांकि इंडियन ब्रीड बकरियों को गर्मियों में इतनी दिक्कतें नहीं होती हैं. लेकिन गर्मियों में निमोनिया का खतरा रहता है. उसके लिए डॉक्टर की टीम है जो टाइम पर उनकी जांच करती रहती है. अगर बुखार की दिक्कत आती है तो दवाएं दी जाती हैं, जो जानवर बीमार पड़ते हैं, उनका तुरंत इलाज कराया जाता है.
बकरी खरीदने के बाद करते हैं ये काम
जब हम किसानों से बकरियों को लेते हैं वहां पर पीपीआर की वैक्सीन लगवाते हैं. डी वार्मिंग वहीं कराते हैं और 15 दिन वहीं रखते हैं. कुछ लोगों को मॉनिटरिंग के लिए वहीं रखते हैं. 15 दिन के बाद एक दवा है जो स्ट्रेस के लिए होती है वो दी जाती है. उसके बाद ट्रांसपोर्ट करके फॉर्म में बकरियों को लाया जाता है. फिर यहां लाकर वैक्सीनेशन किया जाता है और एक महीने तक क्वॉरेंटाइन में रखा जाता है. उसके बाद उन्हें शेड में शिफ्ट किया जाता है. अप्रैल के महीने में एक ट्रेनिंग कैंप शुरू किया जाएगा. इसमें सस्टेनेबल मॉडल के बारे में सिखाएंगे और बताएंगे कि ये मॉडल क्या होता है, किस तरह से फार्मिंग करें कि ज्यादा सफलता मिले.
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