नई दिल्ली. ई-कोलाई मुर्गियों का एक जीवाणुजनित रोग है, जिससे कई प्रकार के संक्रमण पक्षियों में हो सकते हैं. इस बैक्टरिया द्वारा कोली बेसीलोसिस, एगपेरीटोनाइटिस, एयर सेक्यूलाइटिस, सालपिंजाइटिस, हजारे डिजीज आदि रोगों के लक्षण देखे जा सकते हैं.0 आमतौर पर यह जीवाणु पशुओं, पक्षियों और इंसानों आदि के पेट और आंतों में पाया जाता है. स्ट्रेस एवं अन्य अवस्थाओं में होस्ट को संक्रमित कर विभिन्न रोग प्रकट करता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एश्केरिया कोलाई, ग्राम नेगेटिव रोड के आकार के बैक्टीरिया के कारण होता है.
राजस्थान के पशुपालन विभाग के एक्सपर्ट के मुताबिक इस रोग का प्रसार अंडों के माध्यम से हो सकता है, जिससे चूजों में अत्यधिक मृत्यु दर देखी जा सकती है. लिटर व बींट रोग को फैलाने में सहायक हैं. जबकि मुंह और हवा के माध्यम से यह संक्रमण फैल सकता है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
कॉलीसेप्टीसीमिया खून में इस बैक्टीरिया के मिलने से यह अवस्था जाहिर होती है और इसमें सबसे पहले गुद्दों और दिल की झिल्ली में सूजन तथा दिल में स्ट्रा कलर का तरल पदार्थ मिलता है.
एयरसेक्यूलाइटिस- खून से या सीधे ही सांस नली से यह बैक्टीरिया फेफड़ों में पहुंचकर एयरसेक्यूलाइटिस नामक रोग प्रकट करता है, जिसमें उत्पादन कम होना, खांसी आना तथा रेटलिंग आदि लक्षण दिखलाई देते हैं.
सेप्टिसीमिया के कारण ओवीडक्ट में भी यह संक्रमण पहुंच जाता है, जिससे अंडा उत्पादन कम हो जाता है.
चूजे की नाभि द्वारा संक्रमण प्रवेश कर ओमफलाइटिस रोग के लक्षण दिखलाता है, जबकि एयस्सेक्यूलाइटिस के प्रभाव के साथ पेरेटोनियम झिल्ली में सूजन पाई जाती है, जिसे एगपेरीटोनाइटिस कहते हैं.
एंट्राइटिस- ई. कोलाई का आंतों में संक्रमण एंट्राइटिस नामक रोग पैदा करता है, जिससे आंतों के अन्दर की सतह पर सूजन पाई जाती है व पक्षी पतली बींट जैसे लक्षण करता है. इस अवस्था में आंतों में अन्य संक्रमण जैसे कि आइमेरिया प्रजाति के लगने की संभावना रहती है.
इस बीमारी में कोलोग्रेन्यूलोमा या हजारे डिसीज आंतों एवं लीवर पर जगह-जगह ट्यूमर जैसी गांठें दिखाई पड़ती हैं. इस अवस्था को कोलोग्रेन्यूलोमा कहते हैं.
निष्कर्ष
पोल्ट्री फार्म पर रोग की जानकारी होने पर तुरंत ही पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर निदान करवाएं. पशु चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायोटिक का उपयोग कर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है.
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