नई दिल्ली. पशुओं को शलजम खिलाना बेहद ही फायदेमंद है. शलजम की वजह से पशुओं को फाइबर, विटामिन और खनिज मिलते हैं जो पाचन में सुधार करते हैं. वहीं शलजम की वजह से हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और पूरे स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं. डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के मुताबिक शलजम पशुओं के चारे के रूप में फायदेमंद है, लेकिन इसे धीरे-धीरे और अन्य सूखे चारे के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए ताकि पेट की समस्याएं न हों. क्योंकि इसका खतरा रहता है. शलजम के पत्ते भी पौष्टिक होते हैं और पशुओं के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.
शलजम दुनिया भर में अपने सफेद, गोल जड़ो के लिए ठंडी जलवायु वाले स्थानों पर उगाया जाता है. छोटी व मुलायम किस्में पशुओं को खिलाने के लिए उगायी जाती हैं. इसकी उन्नत किस्मों स्नो बॉल, गोल्डन बॉल, पर्पल बॉल, वाईट ग्लोब और रैड टॉप शामिल है. बता दें कि शलजम की जड़ में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है. शलजम का चारा विटामिन ए, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन के और कैल्शियम का अच्छा सोर्स है.
कैसे करें बुवाई
अच्छे पानी निकास वाली बलुई दोमट और दोमट मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त होती है, चिकनी मिट्टी में इसे नहीं उगाना चाहिए क्योंकि इसमें जड़ें अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाती हैं.
पर्वतीय क्षेत्रों में, बुवाई अप्रैल से जून में की जा सकती है जबकि मैदानी क्षेत्रों में बुवाई सितम्बर से नवम्बर में की जा सकती है.
बुवाई 30-35 सेमी दूरी पर स्थित कतारों में 4-5 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर इस्तेमाल करके की जानी चाहिए.
90 किग्रा. नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फोस्फोरस और 30 किलो ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ने पर 20-25 किलो ग्राम सल्फर के साथ डालना चाहिए.
बुवाई सही नमी की अवस्था में की जानी चाहिए. पहली सिंचाई बुवाई के 10-12 दिन बाद और आगे की सिंचाई 15-18 दिन के अंतर पर की जानी चाहिए.
बुवाई के 55-60 दिन बाद हरे चारे की औसत उपज 30-40 टन प्रति प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.
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