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FMD: एप के जरिए पशुपालन में एफएफडी बीमारी से होने वाले नुकसान की मिलेगी सटीक जानकारी, पढ़ें फीचर्स

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प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलॉजी विभाग, लुवास, हिसार की टीम ने पशुओं के हित में एक बड़ा ही अहम एप तैयार किया है. इस एप की खासियत ये है कि, इसके जरिए पशुपालकों एफएमडी बीमारी से होने वाले नुकसान का आंकलन हो सकेगा. जिसके जरिए पशुपालक अगर पशु का बीमा करवा चुका है तो उसे नुकसान की सटीक जानकारी मिल जाएगी और फिर वो उसी हिसाब से क्लेम कर पाएगा. वहीं नए पशुपालकों को भी इसका फायदा होने की बात कही जा रही है. क्योंकि उन्हें पशुपालन शुरू करने से पहले एप के जरिए ये पता चल जाएगा कि इस कार्य में इस बीमारी की वजह से कितना जोखिम है.

लुवास की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. स्वाति दाहिया ने बताया कि इस एप को कॉपी राइट सर्टिफिकेट भी मिल गया है. जल्द ही गूगल प्ले स्टोर पर अपलोड कर देंगे. आम पशुपालक इसे इंस्टाल कर सकता है. उन्होंने बताया कि इस एप पर पशुपालकों को अपने पशुओं की कुछ डिटेल फीड करनी होंगी. मसलन, पशु कितना दूध देता है. उसकी ब्यात का वक्त, बीमारी से दूध घटना, पशुओं का बीमार पड़ना आदि. इन सब डिटेल को फीड करते ही ये एप कुलकुलेट करके नुकसान का आंकलन कर देगा. बता दें कि ये एप बेसिकली एफएमडी बीमारी को लेकर बनाया गया है तो उसी का डाटा बताएगा.

मिल गया है कॉपीराइट सर्टिफिकेट
डॉ. स्वाति दाहिया का कहना है कि इसी आधार पर अब अन्य बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है. जिसकी मदद से पशुपालन में होने वाली नुकसान के बारे में पशुपालक खुद ही पता कर सकेंगे. लुवास कुलपति प्रो. डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने बताया कि पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा ये एप डिजाइन किया गया है. एप के लिए कॉपीराइट सर्टिफिकेट मिल गया है. इस एप की मदद से गाय, भैंस, भेड़-बकरी में मुंह-खुर की बीमारी (एफएमडी) की कारण होने वाले आर्थिक नुकसान का सटीक आकलन किया जा सकता है.

सटीक रिजल्ट आएगा
वहीं डॉ. स्वाति दाहिया ने बताया कि कि एप को बनाने की प्रक्रिया में पहले से मौजूद बेसलाइन डेटा का उपयोग और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग/सॉफ्टवेयर के साथ इसके इंटरफेस पर काम किया गया है, जिससे पशुओं के आयु और लिंग के अनुसार होने वाले नुकसान को सही तरीके से कैलकुलेट किया जा सकता है. यह एप किसानों को मुंह-खुर रोग टीकाकरण कार्यक्रम के लिए जागरूक करेगी तथा मुंह-खुर से प्रभावित जानवरों यानी गाय, भैंस, भेड़ और बकरी में होने वाले आर्थिक नुकसान जैसे दूध उत्पादन में कमी, मृत्यु दर इत्यादि की सटीक गणना की जा सकेगी.

बेहद अहम साबित होगा एप
कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलॉजी विभाग, लुवास, हिसार के वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने उम्मीद जताई कि यह एप मुंह-खुर रोग जैसे उभरते खतरों के बीच पशु स्वास्थ्य की सुरक्षा और कृषि स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण साबित होगा. माइक्रोबायोलॉजी विभाग, लुवास में हुए शोध के आधार पर हरियाणा ऐसा पहला राज्य बना है जिसे पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार ने मुंह-खुर तथा गलघोटू रोग के संयुक्त टीकाकरण की अनुमति दी है.

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