नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के एटा जिले के 90 फीसदी किसान रासायनिक खादों का उपयोग कर फसलों और मिट्टी की गुणवत्ता खराब कर रहे है. वहीं दूसरी तरफ गौ आधारीय एवं प्राकृतिक खेती करने वाले किसान बेहद कम लागात में अच्छा मुनाफा कमाने के साथ मिट्टी उर्वरा शक्ति बढाने के साथ उत्पादन भी काफी अच्छा प्राप्त कर रहे हैं. किसानों को फसल उत्पादन प्राप्त करने में और भी परेशानियां होती है. इतना ही नहीं फसलों में उपयोग होनी वाली रासायनिक खादे एवं प्रेस्टीसाइड मानव शरीर में स्लोपॉइजन का काम करते है, जिससे समाज में अनेकों प्रकार की बीमारियां फैल रही हैं. अगर किसान गो आधारीय एवं प्राकृतिक फसल पद्धिती को अपनाते है तो उनको फर्टिलाइजर एवं प्रेस्टीसाइड पर अनाप सनाप खर्चा करने की जरुरत ही नहीं पडेगी. इसके साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढे़गी. यही वजह है कि ये किसान अपनी फसल के लिए ज्यादा से ज्यादा पशुओं को पालने का काम कर रहे हैं.
एटा में केवीके के वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि सभी प्रकार के फसलीय सीजनों के दौरान जिले के अधिकांश किसान डीएपी, यूरिया एवं एनपीके आदि रासायनिक खादों के लिए खाद केंद्रों पर परेशान रहते है. वह खाद खरीदने में अनाप सनाप पैसा खर्च करते है. इसके बाद भी उनका फसल उत्पादन मंडियों में सामान्य रेटों पर ही बिकता है, जिससे उनकी फसलों की लागात भी नहीं निकल पाती है. इसके साथ ही फसलों में प्रयोग किए जाने वाले फर्टिलाइज एवं प्रेस्टीसाइड जमीन की उर्वरा शक्ति कम कर देते है.इतना ही नहीं फसलों में उपयोग होनी वाली रासायनिक खाद एवं प्रेस्टीसाइड मानव शरीर में स्लोपॉइजन का काम करते है, जिससे समाज में अनेकों प्रकार की बीमारियां फैल रही है. अगर किसान गौ आधारीय एवं प्राकृतिक फसल पद्धिती को अपनाते है तो उनको भी फर्टिलाइजर एवं प्रेस्टीसाइड पर होने वाला खर्चा खत्म हो जाएगा. वहीं जैविक एवं प्राकृतिक पद्धिती से प्राप्त उत्पदनों का मूल्य भी बाजारो में अच्छा मिलेगा, जिससे किसानों की आय दो गुनी होगी. समाज भी स्वस्थ्य बनेगा. लेकिन यह कार्य बगैर पशु पालन के समंभव नही होगा. इसलिए हमें पशुओं की संख्या को बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा.
गौ आधारीय खेती से उगा रहे फल और औषधिया, कमा रहे दो गुना लाभ
एटा में अवागढ़ ब्लॉक के गांव मितरौल निवासी किसान गंगा सिंह अपनी दस बीघा जमीन में बगैर रासायनिक खाद मात्र गो आधारीय पद्धिति से ही विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. उनके अनुसार इस पद्धिति से फसल उत्पादन करने में पहले तो फसलों पर नाम मात्र का खर्चा आता है जबकि उत्पादन बेहद अच्छा प्राप्त होता है. गौ आधारीय उत्पादनों की डिमांड भी मार्केट के काफी अधिक रहती है, जिससे उनका उत्पादन सामान्य से दो गुने रेटों पर बिकता है. उन्होने बताया कि वह गोमूत्र एवं गोबर से बनी खाद एवं कीटनाशकों का उपयोग करते है. वह गन्ना, चंदन, हींग, सतावर, किन्नू, सरसों, लहसुन, मौसमी, मटर, शहतूत, एप्पल बेर, करौदा, आलू एवं दो प्रजाति के केला का उत्पादन कर रहे हैं.
औषधीय एवं सब्जी खेती कर बनाई पहचान
अवागढ़ ब्लॉक क्षेत्र के गांव दलशाहपुर निवासी किसान ओमप्रताप सिंह कुल पांच बीघा जमीन पर विभिन्न प्रकार की गौ आधारीय फसलों का उत्पादन कर रहे है, जिससे उनको कम लागात में अच्छी पैदावार मिलने के साथ अधिक मुनाफा मिल रहा है. किसान ओमप्रताप के अनुसार वह गोमूत्र एवं गोवर से ही खाद एवं कीटनाशक तैयार करते हैं, उसे फसलों में उपयोग करते है. उससे उनकी ही नहीं आसपास की फसलें भी काफी अच्छी पैदा होती है. उन्होंने बताया कि वह अपने खेतों में सतावर, ब्रोकली, लौकी, टमाटर, आलू के साथ अन्य कई प्रकार की फसलें पैदा करते है, जो कि स्वाद में बेहद अच्छी होती हैं, जिसका मार्केट में सामान्य रेटों से दो गुना पैसा मिलता है. गो आधारीय फसलें स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं डालती है.
गन्ना के साथ साथ पैदाकर रहे अनाज
सकीट ब्लॉक क्षेत्र के गांव सराय जबाहरपुर निवासी किसान दुर्बीन सिंह अपनी 20 बीघा जमीन में लगभग पांच वर्षों से गौ आधारीय प्राकृतिक पद्धिति से खेती कर रहे हैं. यह खेती करने के साथ अन्य किसानों को भी इसी पद्धिति से खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. यह एक फार्मिंग प्रोड्यूशन कंपनी भी चला रहे है, जिसमें इन्होंने जिले ही नहीं प्रदेश के प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को शामिल कर समूह बनाया हैं. इन्होंने फार्मिग वैल्यू एडीशन का प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर लिया है. दुर्बीन सिंह के अनुसार वह अपनी दो बीघा जमीन में गन्ना, पांच बीघा में गेहूं, तीन बीघा में आलू एवं दो बीघा खेत में मसूर एवं चना की खेती कर रहे है. दुर्बीन सिंह के अनुसार उनका गेहूं पांच हजार रुपये कुंतल, आलू 25 सौ रुपये कुंतल, चना एवं मसूर 14 हजार रुपये कुंतल खरीदी जाती है, जो कि सामान्य फसल उत्पादन से काफी अधिक रेटों पर बिकती है. वहीं गन्ना भी दो गुने रेटों पर जाता है.
प्राकृतिक अनाज की खेती के साथ बनाते बीज
शीतलपुर ब्लॉक के गांव वाहनपुर निवासी किसान फूल सिंह आर्य वर्षों से रासायनिक खादों के मोहताज नहीं है. वह पशुपालन कर उनके ही मलमूत्र से खरीफ एवं रवी के अलावा दलहन एवं तिलहन की फसलें करते हैं. इसके साथ ही वह आधारीय बीज भी बनाते हैं, जिसका उपयोग कर वह स्वयं के साथ अन्य किसानों को भी देते हैं. किसान फूल सिंह के अनुसार प्राकृतिक खेती करने से फसल उत्पादन रासायनिक खादों से अच्छा प्राप्त होता है. इसके साथ ही बाजार में डिमांड अधिक होने से इसका रेट भी दो गुना मिलता है. प्राकृतिक खेती करना तभी संभव है जब पशु पालन किया जाए. उन्होंने बताया कि वह वर्तमान में गेहूं के साथ जौ की फसल कर रहे है.
प्राकृतिक पद्धिति से खेती करने पर मिल रहा लाभ ही लाभ
ब्लॉक सकीट क्षेत्र के गांव नगला काजी निवासी किसान रामनाथ सिंह प्राकृतिक पद्धिति से ही खरीफ, रबी के साथ सब्जी वर्गीय फसलों का उत्पादन कर रहे है. इनके अनुसार वह बगैर रासायनिक खाद एवं दवाओं के केवल गोबर की खाद एवं कीटनाशक से गेहूं, धान एवं आलू के अलावा टमाटर आदि की भी फसल करते हैं. गेहूं प्रति बीघा पांच कुंतल, एवं बाजार प्रति बीघा चार कुंतल प्राप्त हो जाता है. जिसकी मार्केट वैल्यू सामान्य फसल से अधिक रहती है.
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