नई दिल्ली. बीमारी चाहे इंसानों को हो या फिर जानवरों को इससे दिक्कतें सभी को होती हैं. बीमारी के कारण बॉडी उतने अच्छे ढंग से वर्क नहीं करती है, जिस तरह से सामान्य दिनों में करती है. इंसानों की तरह ही पशुओं को भी ढेर सारी बीमारियां होती हैं. पशुओं को होने वाली इन बीमारियों के कारण उन्हें बेहद ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके चलते प्रोडक्शन पर असर पड़ता है और बीमार पशु कमजोर भी होने लगता है. क्योंकि वो ठीक ढंग से खाना भी नहीं खाता है. इसलिए हमेशा ही बीमारियों से बचने का सबसे बेहतर तरीका इससे बचाव करना होता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर पशुओं को बीमार होने से बचा लिया जाए तो फिर पशुपालन में होने वाले बड़े नुकसान से बचा जा सकता है. इस आर्टिकल में हम आपको पशुओं की तीन बीमारियों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. पूरी खबर गौर से पढ़ें.
गर्भाशय का बाहर निकलना (प्रोलैप्स ऑफ यूटेरस)
गर्भाशय का बाहर निकलने की समस्या गाय की तुलना में भैंस में आम है.
ये परेशानी अनुवांशिक भी हो सकती है और ब्याने के बाद या पहले भी हो सकती है.
बाहर निकले हुए हिस्से को धीरे-धीरे या कोमलता से साफ-सुथरी जगह पर रखना चाहिए.
इस बात का ध्यान दें कि यूटरेस को मिट्टी, मक्खी, पक्षियों आदि से बचाना है.
गर्भाशय को वापस डालने का या उससे कुछ निकालने का प्रयास न करें इससे रक्तस्त्राव की संभावना बढ़ जाती है.
गर्भाशय अगर ज्यादा गंदा हो तो उसे लवण घोल (सलाइन सोल्यूसन) से हल्के हाथ से साफ करना चाहिए.
इसके अलावा भी उपचार की जरूरत पड़े तो तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए.
ग्रसित पशु का पिछला हिस्सा थोड़ा ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए.
पशु खरीदने से पहले वजाइना भाग जांच लें कि उनमें कोई सिलाई के निशान तो नहीं हैं.
जेर का नहीं गिरना (ROP)
आमतौर पर भ्रूण झिल्ली ब्याने के 3-8 घंटे के बाद पर बाहर निकल जाती है.
अगर भ्रूण झिल्ली ब्याने के 12 घंटे बाद भी न निकल पाए उसे ROP कहते हैं.
पशु चिकित्सकों का कहना है कि कभी भी जेर को अपने हाथ से नहीं खीचना चाहिए.
जेर न गिरने से गर्भपात कठिन प्रसव, दुग्ध ज्वर, जुड़वा बच्चे, ब्याने के समय ज्यादा जोर लगाना (प्रसव प्रेरक), संक्रमण और पर्याप्त पोषक तत्वों की कमी से बढ़ जाती है.
कुछ जटिल समस्याओं जैसे कि गर्भाशय में सूजन (मेट्राइटिस), सेप्टिसीमिया यानि जहर फैलने से बचाने के लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करें.
थन में शोफ (इडीमा)
थन में ज्यादा मात्रा में द्रव या तरल भरने से होता है और कभी-कभी ब्याने के समय कोख में भी द्रव भर जाता है. इसका मुख्य कारण है कि थन में रक्त का संचार ज्यादा होता है.
ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में ये समस्या होने की संभावना ज्यादा होती है उसमें भी खासकर बछड़ियों में.
थन को छूने पर दर्द या गर्म लगने का एहसास नहीं होता है.
ये परेशानी इसमें चारे में कमी, मोटापा, व्यायाम की कमी से हो सकती है. या फिर स्थायी भी हो सकती है और पूरे दुग्धकाल तक जारी रहती है.
अगर पशु के थन में शोफ का पता चले तो पशु चिकित्सक की सलाह लें.
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