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Maize: कब करनी चाहिए मक्का की बुवाई, लोबिया के साथ बो सकते हैं इसे

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के मुताबिक भारत में मक्का दाने व हरे चारे दोनों के लिए उगाया जाता है. मक्का की पहली बार मध्य अमेरिका में खोज की गई थी. मक्का का चारा मुलायम और पौष्टिक होता है. इसी वजह से पशु इसे चाव से खाते हैं. एनडीडीबी के मुताबिक हरे चारे के लिए इसे बाली निकलने की अवस्था पर काटना चाहिए. मक्का की खेती दोमट, बलुई दोमट भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है. यह ऐसी भूमि पर भली प्रकार उगती है, जो न तो अम्लीय हो और न क्षारीय.

मक्का की फसल के लिए पलेवा करके 1-2 जुताई कल्टीवेटर हल से करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी है. जायद में मक्का की बुवाई फरवरी के दूसरे पखवाड़े से शुरू की जाती है. खरीफ में मक्का की बुवाई 15 जून के पश्चात करते हैं.

बुवाई कैसे की जाती है
अगर बुवाई लाइनों में करते हैं जिसमें लाइन की दूरी 30 सेमी. होनी चाहिए. लगभग 60-80 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है.

मक्का के साथ लोबिया की सहफसली खेती करने पर मक्का के 40-50 किग्रा. तथा लोबिया के 15-20 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है.

बुवाई लाइनों में करते हैं जिसमें लाइन की दूरी 30 सेमी. होनी चाहिए. लगभग 60-80 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है.

मक्का के साथ लोबिया की सहफसली खेती करने पर मक्का के 40-50 किग्रा. तथा लोबिया के 15-20 किग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है.

सहफसल खेती की दशा में मक्का की प्रत्येक तीन पंक्ति के बाद एक पंक्ति लोबिया उगाना उचित होता है.

संकर तथा संकुल किस्मों में 120 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा. फोस्फोरस प्रति हैक्टेयर देना आवश्यक है.

नत्रजन की दो-तिहाई मात्रा तथा फोस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष एक तिहाई नत्रजन बुवाई के 30 दिन बाद खेत में डालना चाहिए.

खतपतवार नियंत्रण के लिए बोने के तुरंत बाद रासायनिक खतपतवार नाशक एटाजीन 1 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर और पेंडीमिथैलिन 1.5 किग्रा. प्रति हैक्टेयर 600 लीटर पानी में एक साथ घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें.

जरूरत के मुताबिक 12 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई की जानी चाहिए. फसल को कुल 4-6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.

हरे चारे के लिए उगाई गई फसल की कटाई आमतौर पर बाली आने के समय लगभग 50 से 55 दिन के बाद करनी चाहिए.

अच्छे प्रबंधन से इसकी 35-50 टन प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है.

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