नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने देश में पशुओं की खास दवा निमेसुलाइड और इसके फॉर्मूलेशन पर बैन लगा दिया है. अब यह दवा पशु पक्षियों को नहीं दी जा सकेगी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. गौरतलब है कि भारतीय औषधि तकनीकी सलाहकार DTABI ने पशु चिकित्सा दवा निमेसुलाइड पर नेशनल बैन लगाने की सिफारिश की थी, जिसे गिद्धों के लिए बेहद ही जहरीला माना जाता है. इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी करके भारतीय औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड की सिफारिश पर मोहर लगा दी और इस दवा को बैन कर दिया.
निमेसुलाइड पर भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने बैन लगाया है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक निमेसुलाइड जंगली गिद्धों की मौत की वजह बन रही है. दक्षिण अफ्रीका में गिद्धों पर हुए रिसर्च में या नतीजा निकल कर आया है कि इसमें ऐसे जहरीली चीज है, जिससे गिद्धों की मौत हो रही है.
90 के दशक में गिद्धों की हुई थी मौतें
जानकारी के लिए बता दें कि कुछ साल पहले इंटरनेशनल साइंटिफिक जर्नल एनवायरनमेंट साइंट और पॉल्यूशन रिसर्च में प्रिंट गई एक रिपोर्ट में एक रिसर्च के हवाले से कहा गया था कि पशु चिकित्सा दर्द निवारक दवा निमेसुलाइड भारत में गिद्धों की मौत की वजह बन रही है. गौरतलब है कि डिक्लोफेनाक को लंबे समय से या ये कहें कि भारत में 90 के दशक में 90 फीसदी आबादी को खत्म करने की मुख्य वजह माना जाता रहा है. बाद में दो और पशु चिकित्सा दवाएं एसीक्लोफेनाक और कीटोप्रोफेन को भी गिद्धों के लिए जहरीली बताया गया. जबकि डिक्लोफिनाक पर बैन लगा दिया गया. वहीं अन्य दोनों दवाओं पर प्रतिबंध लगाने का प्रपोजल केंद्र सरकार के पास है, लेकिन इसपर विचार किया जा रहा है.
ज्यादा हो सकता था नुकसान
एक स्टडी में यह सामने आया कि निमेसुलाइड गिद्धों पर जहरीले प्रभाव डालने में डाइक्लोफेनाक की तरह ही काम करती है. यदि निमेसुलाइड का पशु चिकित्सा में प्रयोग जारी रहता है तो भारत में गिद्धों और उसको और अधिक नुकसान हो सकता है. इसलिए रिसर्च में सिफारिश की गई इसपर बैन लगा दिया जाए. बता दें कि सरकार की ओर से फंडेड प्रोजेक्ट का हिस्सा था. जिसका शीर्षक था, भारत में पक्षियों का विशेष ध्यान देने के साथ इकोलॉजी सिस्टम के घटकों पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव की निगरानी और निगरानी के लिए राष्ट्रीय केंद्र. इसे एक इकाटॉक्सिकोलॉजी विभाग सलीम अली सेंटर फॉर आर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) और जीवदया चैरिटेबल ट्रस्ट की विशेष्य के द्वारा लिखा गया था.
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