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Animal Husbandry: प्रसव के बाद पशुओं को रहता है इन बीमारियों का खतरा, इलाज के बारे में भी पढ़ें

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भैंस की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुओं को अलग-अलग अवस्था में अलग-अलग बीमारियां होती हैं. मसलन प्रसव के बाद भी पशुओं को कई तरह की बीमारियों का का खतरा रहता है. उन्हीं बीमारियों में से कुछ का यहां जिक्र किया जा रह है. जेर का रुकना उन्हीं बीमारियों में से एक है. एक्सपर्ट का कहना है कि आम तौर पर जेर 3-4 घंटे बाद अपने आप गिर जाती है लेकिन कभी-कभी ब्यात के 24 घंटे के बाद भी जेर नही गिरती है. लटकी हुई जेर को ट्रेंड व्यक्ति द्वारा बिना किसी चोट के आसानी से निकलवाना चाहिए. यदि जेर को असावधानी से निकला जायेगा तो इससे बच्चेदानी में घाव व चोट होने की सम्भावना होती है.

एक्सपर्ट कहते हैं कि मातृत्व कैरनकल जिनसे जेर जुड़ी होती है. वह पर रक्तस्त्राव होने का खतरा होता है. इसके उपचार के लिए Replanta पाउडर 5 दिनों के लिए 100 ग्राम प्रतिदिन, व इन्वोल्वन लिक्विड 200 मिली प्रतिदिन 5-10 दिन पिलाने से लाभ मिलता है. “काढ़ा’ जो की गरेलू निर्मित हर्बल टॉनिक है, (अजवाइन, सोंफ, मेथी, काला नमक व गुड़ प्रर्याप्त मात्रा में पानी में मिलाकर आधा रहने तक गर्म करके, फिर ठंडा करें) पिलाने से भी लाभ मिलता है.

फूल दिखाना की समस्या
गर्भाशय ग्रीवा व गर्भास्य का योनि मार्ग से बाहर दिखना प्रोलैप्स कहलाता है. पशु के हीट या गर्मी के समय में एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्राव अत्यधिक मात्रा में होने के कारण होता है. यह पशु के रक्त में आम तौर पर कैल्शियम का स्तर कम हो जाना, व प्रोजेस्टेरोन हार्मोन स्तर कम हो जाने के कारण भी होता है. कभी-कभी गर्भावस्था के समय में भी, जब पशु के ब्याने का समय नजदीक हो तब भी प्रोलैप्स की समस्या हो जाती है. नियमित रूप से खनिज मिश्रण देने से इस रोग की सम्भावना को कम कर सकते हैं.

प्रोटोजोआ से होने वाली बीमारियों के बारे में जानें
थेलेरियोसिस बीमारी यह एक टिक (चिचड़ी) जनित रोग है, जिसमे पशु एनीमिया (खून की कमी) व तेज बुखार और लिम्फ नोड्स की वृद्धि जैसे विशेष संक्रमण से ग्रसित हो जाता है. मुख्य रूप से संकर नस्ल की गाय इस रोग से जल्दी पीड़ित हो जाती हैं. वहीं बबेसिओसिस बीमारी प्रोटोजोआ परजीवी से होती है. चिचड़ी संक्रमण का मुख्य स्रोत हैं. इस बीमारी में पशु को रक्त युक्त मूत्र (कॉफी रंग का पेशाब) आता है. परजीवीयों के द्वारा लाल रक्त कोशिकाओं को तोड़ने से, हीमोग्लोबिन का नुकसान होता है, जिससे अरक्तता होती है. शरीर का तापमान घट या बढ़ जाता है, आंख म्यूकोसा और थनों का पीला पड़ जाना, इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. लक्षण दिखाई देने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, क्योंकि इस रोग से पशु की मौत भी हो सकती है.

दस्त लगने की समस्या कब होती है
पशुओं को अक्सर दस्त की समस्या हो जाती है. ये पेट में फ्लुक्स के कारण होती है, जिससे आँतों में सूजन आ जाती है. पेट या जिगर / लिवर में या आंत में आंतरिक परजीवी पशु को कमजोर बनाता है. Panacur 3 ग्राम की दो बोलस (बड़े पशु के लिए) या Fanzole DS 3 ग्राम की 2 बोलस खिलानी चाहिए. इससे जानवर आंतरिक परजीवी से मुक्त हो जाता है.

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