नई दिल्ली. देश में मुर्गी पालन का कारोबार लगातार बढ़ता ही जा रहा है. हिंदुस्तान में दो तरह से मुर्गी पाली जाती हैं. एक तो बैक यार्ड और दूसरी पोल्ट्री फार्म में. पोल्ट्री फार्म के बारे में तो ज्यादातर लोग जाते हैं लेकिन बैकयार्ड क्या होता है इस बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. हालांकि देश में पोल्ट्री फार्मिंग बड़े पैमाने पर होती है जबकि बैकयार्ड छोटे स्तर पर की जाती है. आपको बता दें कि देसी मुर्गी और अंडे का कारोबार सबसे ज्यादा बैकयार्ड पोल्ट्री में ही होता है. हालांकि ये भी याद रखें कि देश में देसी मुर्गी के अंडे का बिजनेस कम ही होता है. आज लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज आपको इन दोनों तरह की फार्मिंग के बारे में विस्तार से बताने जा रहा है. इसलिए पूरी नॉलेज लेने के लिए इस पूरी खबर को जरूर पढ़ें.
देश में दो तरह से मुर्गी पाली जाती हैं. एक तो बैक यार्ड और दूसरी पोल्ट्री फार्म में. बैकयार्ड पोल्ट्री के लिए कम जगह चाहिए होती है और कहीं भी शुरुआत की जा सकती है. जबकि पोल्ट्री फार्म के लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है. आपको बता दें कि घर, खेत पशुओं के बाड़े के बीच पाले जाने वाले मुर्गे-मुर्गी को बैकयार्ड पोल्ट्री कहते हैं. बैकयार्ड और पोल्ट्री फार्म में तीन तरह से मुर्गी पालन होता है. एक लेअर यानी मतलब अंडे देने वाली मुर्गी. ब्रायलर मुर्गे-मुर्गी मीट की डिमांड पूरी करने के लिए पाले जाते हैं. जबकि तीसरी होती है हैचरी बर्ड. हैचरी यानी मुर्गी के अंडों से चूजे लिए जाते हैं. फिर उन एक दिन के चूजों से लेकर 5 दिन के चूजों को बाजार में मुर्गी पालन करने वालों को बेच दिया जाता है.
देश के कई राज्यों में होती है बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग
मुर्गी पालक विशेषज्ञों के अनुसार बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडू और पश्चिुम बंगाल में होती है.
ऐसी होती है बैकयार्ड पोल्ट्री
पोल्ट्री एक्सपर्ट मनीष शर्मा के अनुसार घर के किसी भी हिस्से में, खेत पर, फार्म हाउस पर या फिर जहां भी थोड़ी सी जगह मिल जाए वहां बैकयार्ड पोल्ट्री की जा सकती है. इसमें 20 से 25 मुर्गे और मुर्गियां पाली जाती हैं. यह देसी नस्ल के होते हैं. देसी अंडे और चिकन दोनों ही महंगे होते हैं. इनका मार्केट में कोई फिक्स रेट नहीं होता, जो आपस में तय हो जाए उसी हिसाब से बिकने लगता है. बैकयार्ड पोल्ट्री में अंडे और चिकन की बिक्री सर्दी के मौसम में ही ज्यादा होती है.
पोल्ट्री फार्म को चाहिए ज्यादा जगह
बैकयार्ड फार्मिंग हम कम जगह में कर सकते हैं लेकिन पोल्ट्री फार्म के लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है. अंडे देने वाली लेयर मुर्गी का फार्म हो या फिर ब्रॉयलर चिकन का फर्म, इन दोनों के लिए ही बड़े एरिया की आवश्यकता होती है. दोनों में से किसी का भी फार्म कम से कम पांच हजार मुर्गियों का होता है. पोल्ट्री फार्म में अंडे देने वाली मुर्गी पाली जाती हैं तो चिकन के लिए ब्रॉयलर मुर्गे तैयार किए जाते हैं. यह काम पूरे साल चलता रहता है. हालांकि सर्दियों को अंडे का सीजन माना जाता है. जबकि चिकन 12 महीने खाया जाता है. बता दें कि देसी में कड़कनाथ, वनश्री, निकोबरी, वनराजा, घागुस और श्रीहिंदी भी बैकयार्ड पोल्ट्री में पाले जाते हैं. लेकिन असील की अपनी एक खास पहचान है.
बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म में पाले जा रहे कड़कनाथ
देसी और फारमी मुर्गा-मुर्गी के अलावा अब कड़कनाथ के नस्ल के मुर्गे-मुर्गी की भी खूब डिमांड रहने लगी है. इस नस्ल की मुर्गी का एक अंडा 50—60 रुपये तक का मिलता है. कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गी देखने में काले रंग के होते हैं. यह नस्ल विशेषतौर पर झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार में मिलती है. कड़कनाथ का मीट 15 सौ रुपये किलो तक बिक रहा है. जबकि तीन-चार साल पहले तक इसका मीट 4 हजार रुपये किलो पहुंच गया था.
असील का अंडा सबसे मंहगा
देसी मुर्गी की एक नस्ल असील भी है. इस नस्ल की मुर्गी को सिर्फ बैकयार्ड पोल्ट्री में ही पाला जाता है. असील का अंडे की मांग बहुत रहती है.खासकर सर्दियों में इसकी मांग और भी बढ़ जाती है. दवाई के तौर पर भी असील का अंडा खाया जाता है. यही वजह है कि सर्दियों में इसका अंडा 100 रुपये तक का बिक जाता है.हैचरी के लिए सरकारी केन्द्रों से ही असील मुर्गी का अंडा 50 रुपये तक का मिलता है. असील मुर्गी पूरे साल में सिर्फ 60 से 70 अंडे देती है.
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