नई दिल्ली. भारत के बीच और साउथ राज्यों का क्लाइमेट आमतौर पर गर्म और ह्यूमिडिटी वाला होता है. इन राज्यों में लाखों एक दिन के चूजे और लाखों की संख्या में उर्वरक अंडे किसानों को कई कृषि विज्ञान केंद्रों, पशुपालन विभागों एवं गैर सरकारी संस्थानों द्वारा बांटे गए थे. इसके रिजल्ट जब सामने आया तो पता चला कि इन क्लाइमेट में भी वनराजा व ग्रामप्रिया नस्ल ने बेहतरीन उत्पादन है. एक रिसर्च जो कि तेलंगाना के जहीराबाद जिले में की गई उससे पता चला कि वनराजा के 25 सप्ताह का मुर्गा और मुर्गी का शरीर वजन भार 3.75 और 2.67 किलोग्राम था. इससे पता चलता है कि वनराजा एवं ग्रामप्रिया नस्ल इस जलवायु क्षेत्र के लिए बेहतर हैं.
वनराजा और ग्रामप्रिया नस्ल भीषण शीतल जलवायु क्षेत्र में भी साधारण रुप से ढल जाती हैं. रिसर्च में इन नस्लों को पहले शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय के प्रांगण में 6 सप्ताह तक पाला गया. उसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र बडगाम, मलांग्पोरा, पोम्बय और कुक्कुट विकास संस्थान द्वारा अनंतनाग, कुपवाड़ा क्षेत्र के किसानों को वितरित किया गया. इन क्षेत्रों का तापमान जहां 20 डिग्री सेल्सियस से. तक चला जाता है. वहां भी ये नस्ल पूरी तरह अनुकूलित हो पाए गए. वनराजा मुर्गे का 8, 10, 16 24 और 30 सप्ताह में औसत शरीर वजन भार क्रमशः 840, 920, 1719, 1908 और 3248 ग्राम था.
ह्यूमिडिटी में कितना उत्पादन
इसी तरह मुर्गी का शरीर वजन भार 702, 1337, 1502 और 2642 ग्राम था. मृत्यु दर मात्र 4.7-14.6 फीसदी दर्ज की गई. पहला अंडा देने की उम्र 178-180 दिन थी. तटीय गरम एवं ह्यूमिडिटी क्षेत्र जहां का तापमान 30-45 डिग्री सेल्सियस और ह्यूमिडिटी 70 फीसदी होती है. वहां भी ग्रामप्रिया नस्ल का उत्पादन उत्साहवर्धक पाया गया. वनराजा एवं ग्रामप्रिया नस्ल सरलता से किसी भी वातावरण में ढल जाने के कारण इसे अंडमान और निकोबार एवं लक्षद्वीप में भी किसानों ने बखूबी अपनाया है.
पहाड़ों पर कितनी है उत्पादन क्षमता
पुर्वोत्तर के प्रदेश (असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम एवम् सिक्किम) जहां के वातावरण में काफी मिलता जुलता है. वहां भी करीब 1.7 लाख उर्वरक अंडे, 50 हजार चूजे एवं 11 हजार चूर्जी की आपूर्ति की गयी और किसानों ने स्वीकार कर ग्रामीण मुर्गी पालन का कार्य शुरु किया. वनराजा का छह हफ्ते में परिपक्व शारीरिक वज़न 700-800 हो गया था. वहीं कई का वजन 2000-2200 ग्राम तक हो गया था. वार्षिक अंडे देने की क्षमता 140-150 पायी गयी थी. ग्रामप्रिया एक अधिक अंडे देने वाली नस्ल है. जिसने पुर्वोत्तर राज्यों में 500 दिन में 170-200 अंडे दिये.
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