नई दिल्ली. दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा बेहद ही जरूरी होता है. हरे चारे के लिए पशुपालक भाई ज्वार की खेती कर सकते हैं. खरीफ के मौसम जिसे मॉनसून का भी मौसम कहा जाता है उसमें चारे की मुख्य फसल है. देसी किस्मों में प्रोटीन कम होने से यह एक बेहतरीन आहार माना जाता है. इसकी उन्नत किस्मों में 7-9 प्रतिशत प्रोटीन होती है, जिससे ये किस्में अच्छा आहार मानी जाती हैं. उन्नत किस्मों में मीठी ज्वार (रियो), पीसी 6, पीसी 9, यूपी चरी, पन्त चरी-3, एचसी 308, हरियाली चरी-1711, कानपुरी सफेद इत्यादि किस्मों का चुनाव करना चाहिए.
पशुपालन विभाग राजस्थान (Animal Husbandry Department Rajasthan) के एक्सपर्ट ने लाइव स्टक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) से बताया कि ज्वार की बुआई जून-जुलाई महीनों में करनी चाहिए. बाारिश न होने की परिस्थिति में बुआई पलेवा करके करनी चाहिए. छोटे बीजों वाली किस्मों जैसे मीठी ज्वार के बीज 25 से 30 किलो ग्राम तथा दूसरी किस्मों के बीज 40 से 50 किलो ग्राम प्रति हैक्टर रखने चाहिए. इसे फलीदार फसल जैसे-लोबिया के साथ 2:1 के अनुपात में बोया जा सकता है. इससे हरे चारे की पौष्टिकता व उत्पादकता बढ़ जाती है.
बुआई का क्या है तरीका
छिड़काव या सीडड्रिल से की जा सकती है. मिलवां फसल में बुआई सीडड्रिल द्वारा कूड़ों में करनी चाहिए.
उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी के परीक्षणों के आधार पर करना चाहिए. आमतौर पर 80-100 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलो ग्राम फॉस्फोरस एवं 20 किलो ग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से चारे की अधिक उपज हासिल की जा सकती है.
नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय उपयोग करनी चाहिए. शेष एक-तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा का प्रयोग बुआई के 30-35 दिनों के बाद में टॉप ड्रेसिंग करना चाहिए.
जून में बुआई करने पर सूखे की स्थिति में 1 या 2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. बाद में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें.
चारे के लिये बोई गयी फसल 60-70 दिनों में कटाई योग्य हो जाती है.
पौष्टिक चारा प्राप्त करने हेतु कटाई फूल आने की अवस्था पर करनी चाहिए.
सभी किस्मों से हरा चारा उपज 250-450 क्विंटल प्रति हैक्टर हासिल होती है.
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