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Animal Husbandry: विदेश में होने वाले खेलों में हिस्सा ले पाएंगे भारतीय घोड़े, बड़ी रुकावट हुई दूर

पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय ने पंजाब के हॉर्स ब्रीडर को एक मंच पर लाने के लिए कदम उठाया
प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन की सहमति के बाद अब भारतीय घोड़ों के विदेश में होने वाले तमाम खेलों में हिस्सा लेने के रास्ते में आ रही अड़चने दूर हो गईं हैं. यानी अब घोड़े के संबंध में होने वाले एक्सपोर्ट मार्केट के रास्ते में भी रुकावट दूर हो जाएगी. हॉर्स डिजीज फ्री आरवीसी इंटरनेशनल लेवल पर भारत को इस फैसले के बाद बड़ी कामयाबी मिली है. इसके बाद भारतीय घोड़े विदेश में होने वाले इंटरनेशनल गेम्स जैसे पोलो आदि में हिस्सा ले पाएंगे. बता दें कि लंबे समय की मेहनत के बाद इस कामयाबी को हासिल किया गया है. आने वाले कुछ समय में विदेशी धरती पर भारतीय घोड़े खेलों में हिस्सा लेते नजर आएंगे.

डब्ल्यूओएच ने आरवीसी को घोड़े की बीमारी के संबंध में मान्यता दी है. इस केंद्र को बीमारियों के संबंध में डिजीज फ्री घोषित करने का फैसला डब्ल्यूओएच ने किया है. इससे अब यह साफ हो गया है कि भारतीय घोड़े में प्रमुख रूप से पाई जाने वाली बीमारियां, जैसे ग्लैंडर्स, एक्क्वीन इन्फ्लूएंजा समेत आधा दर्जन बीमारियां आरवीसी केे घोड़ों में नहीं है.

डिसीज फ्री की काफी लंबी है प्रक्रिया
इस संबंध में हम जानकारी देते हुए एनिमल हसबेंडरी कमिश्नर डॉक्टर अभिजीत मिश्रा का कहना है कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक जोन बनाया जाता है जिसे अश्व रोग मुक्त कम्पार्टमेंट (EDFC) कहा जाता है. जिसके तहत घोड़ों को बीमारी से बचाने के इंतजाम किए जाते हैं. इसके लिए बायो सिक्योरिटी के तरीके अपनाए जाते हैं. जरूरत पड़ने पर घोड़ों को वैक्सीनेशन किया जाता है. इतना ही नहीं बीमारी से बचाने के लिए WOAH की गाइड लाइन के मुताबिक कई नियमों का पालन किया जाता है. आपको बता दें कि ये प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है. बीमारियों की रोकथाम के लिए टीम निरीक्षण भी करती है और फिर दिक्कत आने पर इलाज होता है. इन तरीकों को अपनाने का फायदा ये होता है कि फिर घोड़े बीमारी से सेफ हो जाते हैं. उनपर कोई भी बीमारी असर नहीं करती है. उसके बाद जोन डीजीज फ्री होने की फाइल WOAH को भेजी दी जाती है और इतनी लंबी प्रक्रिया के बाद जोन को डीजीज फ्री घोषि‍त करने का काम किया जाता है. अब खेलों के साथ-साथ इस जोन का फायदा घोड़ों को एक्सपोर्ट करने में भी उठाया जा सकेगा.

फायदे कई हैं, पढ़ें यहां
डॉ. अभि‍जीत का कहना है कि अब इस जोन के बन जाने से घोड़ों से जुड़े कई क्षेत्रों में इसका फायदा मिलने लगेगा. उन्होंने कहा कि खेलों में खरीद-फरोख्त में, प्रजनन (ब्रीडिंग) में और बायो सिक्योरिटी के साथ-साथ डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट को इतना ज्यादा मजबूत कर दिया जाता है कि जिससे बीमारी का कोई खतरा ही न रह जाए. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि घोड़ों को आमतौर पर इक्विन संक्रामक एनीमिया, इक्विन इन्फ्लूएंजा, इक्विन पिरोप्लाज्मोसिस, ग्लैंडर्स और सुर्रा जैसी बीमारियों से लड़ना पड़ता है. हालांकि अफ्रीकी हॉर्स सिकनेस के मामले में भारत साल 2014 में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है. उन्होंने बताया कि इसी तरह के डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट जाने बनाने के लिए पोल्ट्री से जुड़ी बीमारियों और दुधारू पशुओं में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी पर भी काम चल रहा है. जिससे करीब नौ राज्य एफएमडी फ्री घोषि‍त होने की कगार पर हैं.

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