नई दिल्ली. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के दो फैसलों के बाद से Al-A2 दूध की चर्चा और तेज हो गई है. पहले FSSAI ने एक ऑर्डर जारी कर A2 दूध से बना घी और दूसरे प्रोडक्ट बेचने पर रोक लगा दी थी. लेकिन फिर अचानक से कुछ दिन बाद ही FSSAI ने अपने फैसले को वापस ले लिया. वहीं इस बारे में इंडियन डेयरी एसोसिएशन (IDA) के प्रेसिडेंट डॉ. आरएस सोढ़ी का कहना है कि हमारी हमेशा से ये कोशिश रही है कि डेयरी सेक्टर से जुड़ी सभी कंपनियों, डेयरी किसान और ग्राहकों को फायदा मिले.
हम देख रहे हैं कि बीते कुछ साल से देश ही नहीं विदेशी बाजार में भी Al-A2 दूध की बहस तेज हो गई है. लेकिन जरूरी ये है कि इस मुद्दे पर वैज्ञानिक आधार समेत ग्राहक और डेयरी किसानों के आर्थिक पहलू को ध्यान में रखकर बात की जाए. क्योंकि बिना वैज्ञानिक और ठोस आधार के दूध में बंटवारा करना डेयरी किसान और डेयरी सेक्टर के लिए ठीक नहीं है. Al और A2 दूध की चर्चा उसमे पाए जाने वाले खास तरह के बीटा-कैसिइन प्रोटीन को लेकर है. हालांकि Al और A2 बीटा-कैसिइन दोनों गाय के दूध में पाया जाता है. A2 दूध को कुछ लोगों के लिए पचाना आसान माना जाता है, इसलिए A2 दूध की मांग बढ़ रही है. दावा किया जाता है कि A2 दूध Al की तुलना में बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है.
जरूरत है इस मौके में फायदा उठाया जाए
डॉ. आरएस सोढ़ी का कहना है कि भारत में कई तरह की देशी गायों की नस्लें पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ ऐसी हैं जो प्राकृतिक रूप से A2 दूध का उत्पादन करती हैं. और ये सब भारतीय डेयरी सेक्टर के लिए घरेलू और इंटरनेशनल बाजारों की डिमांड को पूरा करने का एक बड़ा मौका है. ये दोनों ही बाजार तेजी से A2 दूध की मांग कर रहे हैं. हालांकि, हमें यह भी सोचना होगा कि भारत के दूध का एक बड़ा हिस्सा संकर गायों से आता है जो Al और A2 दूध का मिश्रण पैदा करती हैं. लेकिन हमारे लिए ये जरूरी है कि A2 दूध को बढ़ावा देते हुए Al और A2 दूध के बीच संतुलन बनाना भी बहुत जरूरी है. डेयरी प्रोडक्ट बेचने के लिए A2 दूध का प्रचार इस तरह से किया जाना चाहिए कि ग्राहक को जागरुक किया जाए, डेयरी किसानों की इनकम पर असर ना पड़े और डेयरी सेक्टर को प्रभावित करने वाला ना हो.
A2 दूध के बारे में ये है IDA की राय
IDA A2 दूध से जुड़े स्वास्थ्य दावों को मान्य करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन करता है. उपभोक्ताओं को स्पष्ट, तथ्यात्मक जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे वो प्रचार के बजाय विश्वसनीय वैज्ञानिक आधार पर विकल्प बना सकें. स्वदेशी नस्लों को बढ़ावा देने के लिए सरकार और डेयरी सेक्टर को स्वदेशी A2 उत्पादक पशुओं के प्रजनन को प्रोत्साहित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. इसी से बाजार की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए किसानों की इनकम में सुधार होगा. उपभोक्ताओं को Al और A2 दूध के बीच के अंतरों के बारे में जागरुक करना, दोनों दूध के पोषण संबंधी फायदों के बारे में बताना जरूरी है. दूध के बारे में गलत सूचना और अफवाहें परेशानी खड़ी कर सकती है. IDA खुद भी मौजूदा गलत धारणाओं को स्पष्ट करने के लिए लगातार प्रचार कर रहा है. आज A2 दूध का अपना बाजार है, लेकिन हमें यह तय करना होगा जो ज्यादातर डेयरी किसान Al या मिक्स दूध का उत्पादन करते हैं वो पीछे न छूट जाएं. जबकि जरूरी ये है कि दूध की कुल गुणवत्ता, झुंड की उत्पादकता और किसान कल्याण में सुधार पर ध्यान दिया जाना चाहिए, फिर चाहें दूध का उत्पादन किसी भी प्रकार का हो. Al और A2 दूध दोनों की क्षमता का इस्तेमाल इस तरह किया जाए जिससे किसानों से लेकर ग्राहक तक सभी को फायदा हो.
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