नई दिल्ली. बाजरा भी पशुपालन के लिए अहम चारा फसल है. यह एक तेजी से बढ़ने वाली तथा ज्यादा कल्ले फूटने वाली चारे की फसल है. सूखे व कम सूखे क्षेत्रों में इसकी बुवाई की जाती है. यह अकेले या लोबिया या फिर ग्वार के साथ बोई जाती है. इस चारा फसल को बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी रहती है. पलेवा करके 2-3 जुताई कल्टीवेटर हल से करके मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए तथा पाटा लगाकर खेतों को समतल कर लेना चाहिए. बुवाई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम पक्ष तक की जा सकती है.
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के मुताबिक शुद्ध फसल के लिए 8-10 किलो ग्राम बीज प्रति हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है. मिलवां फसल में बाजरा तथा लोबिया 2:1 के अनुपात (दो लाइन बाजरा तथा एक लाइन लोबिया या ग्वार) में बोना चाहिए. इसके लिए 6-7 किलो ग्राम बाजरा और 12-15 किलो ग्राम लोबिया या 7-8 किलाो ग्राम ग्वार के बीज की आवश्यकता होती है.
कैसे करें बुवाई
आमतौर पर इसकी बुवाई छिटकवां की जाती है लेकिन 30 सेमी दूरी पर लाइनों में इसकी बुवाई करना ठीक रहता है. मिलवां खेती में अच्छी पैदावार के लिए बुवाई लाइनों में अलग-अलग करना चाहिए ताकि बीज भूमि में उचित नमी पर पड़ सके.
बुवाई के समय 90 किग्रा. नत्रजन और 40 किलो ग्राम फोस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए.
नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष बुवाई के 25-30 दिन बाद देनी चाहिए. हर कटाई के बाद 40 किग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर देनी चाहिए.
बाजरा बोने के तुरंत बाद 1 किलो ग्राम एट्राजीन 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें.
जरूरत के मुताबिक फसल को 15-20 दिन के अंतर पर पानी देना चाहिए, फसल को कुल 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है.
बाजरे को हरे चारे के लिए 50 प्रतिशत बाली निकलने पर काटना चाहिए.
हरे चारे की औसत उपज 30-50 टन प्रति हैक्टेयर होती है.
इसकी उन्नत किस्म की बात की जाए तो नरेंद्र चारा बाजारा 2 और गुजरात चारा बाजरा 1 है.
निष्कर्ष
इन दोनों ही फसल से उत्तर पूर्व मैदान में 47 टन और उत्तर पश्चिम भारत में 50 टन चारा उत्पादन होता है. इसलिए इससे पशुओं को भरपूर चारा मिलेगा.
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