नई दिल्ली. ऐसे ही नहीं कहा जाता कि भारत में दूध की नदियां बहती हैं. आंकड़ों की बात करें तो भारत दुनिया में कुल दूध उत्पादन में पहना स्थान रखता है तो 537 मिलियन पशुओं के साथ तादात में भी नंवर वन है. 2022-23 की बात करें तो 3.83 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के साथ 230.58 मिलियन टन दूध का उत्पादन कर देश ने दुनिया में झंडे गाढ़ दिए. मगर, एक बात का बेहद अफसोस है कि भारत प्रति पशु दूध उत्पाादन के मामले में विश्व में दूसरे देशों से काफी पीछे है. वैज्ञानिकों की मानें तो इसके पीछे जो सबसे बड़ी वजह है वो चारे की कमी है. इंडिया में हरे और सूखे चारे की बहुत कमी देखी जा रही है. इतना ही नहीं जो चारा मिल भी रहा है तो उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है. मतलब वो चारा पौष्टिक नहीं है. यही वजह है कि ªजितना दूध पशुओं को देना चाहिए, उतना दे नहीं रहे. बेहद जरूरी बात हम नहीं बल्कि इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झांसी के डॉयरेक्टर अमरीश चन्द्रा ने कहीं हैं। पिछले महीनों आयोजित किए गए एक इंटरनेशनल फोडर कांफ्रेंस में बोलते हुए उन्होंने ये बात कही है. इस कांफ्रेंस में देश के साथ ही दूसरे देशों से आए फोडर एक्सपर्ट ने भी इस संबंध में कई नई बात सामने रखीं, जो बेहद चौंकाने वाली हैं.
भू माफिया ने चारागाहों पर कर लिए कब्जे
रेंज मैनेजमेंट सोसाइटी ऑफ इंडिया और इंटरनेशन कांफ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ. डीएन पलसानिया ने की मानें तो उन्होंने कहा कि हर एक गांव के स्तर पर पशुओं को चराने के लिए एक चारागाह होती है. लेकिन कांफ्रेंस के दौरान ये खुलासा हुआ है कि चारागाह की बहुत सारी जमीन पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण कर लिए गए हैं. इतना ही नहीं बहुत सारी चारागाह की जमीनों पर तो स्कूल और पंचायत घर जैसी दूसरी बिल्डिंग तक बना ली गई हैं. इसके चलते पशुओं के लिए चरने तक की जगह नहीं बची है. ऐसे में चारे की कमी का असर सीधे तौर पर दूध उत्पादन को प्रभावित कर रहा है.
इंटरनेशनल कांफ्रेंस में उठी ये पॉलिसी बनाने की मांग
रेंज मैनेजमेंट सोसाइटी ऑफ इंडिया और इंटरनेशन कांफ्रेंस के आयोजन सचिव डॉ. पलसानिया कहते हैं कि कांफ्रेंस में इस बात पर भी ,खासतौर पर चर्चा हुई कि चारागाहों पर हो रहे कब्जे. रोकने और उन्हें हटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और लोकल प्रशासन की है. लेकिन अक्सर देखा गया है कि आपसी असामंजस्य के चलते चारागाहों पर हो रहे कब्जों को लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं हो पाती है. यहां तक की कई विभागों के होते हुए भी चारागाहों पर स्कूल और पंचायतघर तक बन जाते हैं. लेकिन ऐसे मामलों पर कदम उठाने के लिए कांफ्रेंस में नेशनल ग्रासलैंड पॉलिसी बनाने की मांग उठी है.
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