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Anthrax: 6 राज्यों के 15 शहरों की भेड़-बकरियों में है इस बीमारी का खतरा, यहां जानें कैसे करें बचाव

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भेड़ और बकरी की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली.एन्थ्रेक्स एक ऐसी बीमारी है जो ज्यादातर भेड़ और फिर बकरियों को होती है. हालांकि इसका ज्यादा असर बकरियों ज्यादा दिखता है. एन्थ्रेक्स रोग एक ऐसा रोग है, जो एक बार अगर पशु को लग जाए तो फिर इसे मौत भी हो सकती है. इसे कई जगह पर गिल्टी रोग, जहरी बुखार, या पिलबढ़वा भी कहा जाता है. इस बीमारी में भेड़-बकरियों को इंजेक्शन दिया जाता है और इसी से इलाज होता है. इससे बचाव के लिए टीकाकरण भी करवाया जा सकता है. पशुपालन को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था ने देश भर के छह राज्यों के 15 जिलों में इस बीमारी के खतरे की आशंका जाहिर की है.

संस्था की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि मई महीने में इस बीमारी के 6 राज्यों के 15 शहरों में फैलने के आसार हैं. इसलिए जरूरी है कि पशुपालक जरूरी एहतियात बरत लें और अपने पशुओं का टीकाकरण जरूर करवा लें. आइए इस खबर में हम आपको तमाम जानकारी से रूबरू कराते हैं.

इन राज्य में ज्यादा खतरा
एन्थ्रेक्स बीमारी की बात की जाए तो आंध्र प्रदेश के तीन जिले इससे प्रभावित होने हो सकते हैं. संस्था की ओर से कहा गया है कि इन तीन जिलों में बीमारी फैल सकती है. वहीं कर्नाटक के सबसे ज्यादा पांच जिले इसेसे प्रभावित होंगे. इन पांच जिलों में एन्थ्रेक्स बीमारी फैलने का खतरा सबसे ज्यादा बताया गया है. महाराष्ट्र में एक उड़ीशा में एक, तमिलनाडु में तीन और इसके बाद वेस्ट बंगाल में दो शहरों में इस बीमारी के फैलने का खतरा है.

क्या है ये बीमारी
इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली रोग से जानते है यह रोग जीवाणु द्वारा होता है, भेड़ों की उपेक्षा यह रोग बकरियों में अधिक होता है जिसे गददी भेड़ पालक (गंणडयाली नामक) रोग से जानते है. यह रोग भेड़-बकरियों में बहुत तेज़ बुखार आता है, मृत भेड़-बकरी के नाक, कान, मुंह व गुदा से खून का रिसाव होता है. छूआछूत व संक्रमण से पशुओं में फैलनेवाली एंथ्रेक्स बीमारी जानलेवा है. पशु रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि यह एक एपीडेमिक बीमारी है जो एक बार जिस स्थान पर फैलती है. वहीं उसी स्थान पर बार-बार फैलती रहती है. इसे गिल्टी रोग, जहरी बुखार या पिलबढ़वा रोग के नाम से भी पुकारा जाता है.

रोग से बचाव कैसे करें
इस रोग से मरे भेड़-बकरियों की खाल नहीं निकालनी चाहिए तथा मृत जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए तथा चरागाह को बदल देना चाहिए. बीमार भेड़-बकरियों को एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार देना चाहिए. इस रोग से बचाव हेतू टीकाकरण करवाया जा सकता है.

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