नई दिल्ली. पशुपालन कर आज अन्नदाता अपनी कमाई को बढ़ा रहे हैं. देश के हर राज्य में बड़े स्तर पर पशुपालन किया जाता है. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में भी कई पशुओं की नस्लें बहुत फेमस हैं. इनमें से भैंस की एक नस्ल बहुत जानी जाती है. ये है छत्तीसगढ़ी बफैलो (भैंस) है. इस भैंस को प्रदेश की पंजीकृत नस्ल के रूप में प्रमाणित किया गया है. इस भैंस को खाने में बेहद कम मिलता है, लेकिन बावजूद इसके ये अच्छा दूध देती है. यदि खान पान संतुलित और अच्छा दिया जाए तो इस भैंस से दूध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है. पशुपालन में आज बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की इस भैंस के बारे में. आइये जानते हैं, इसकी खासियत क्या है. दूध के मामले में ये गाय से बेहतर है या नहीं. सब जानते हैं इस आर्टिकल में.
छत्तीसगढ़ की भैंस को उसके शारीरिक लक्षण, दूध उत्पादन और प्रजनन की विशेषतताओं पर जांचा गया. इसके बाद स्थानीय प्रजाति की इन भैंसों को रजिस्टर्ड किया गया है. छत्तीसगढ़ बफैलो के रजिस्टर्ड का प्रमाण पत्र मिला है. इस भैंस में क्या है खास जानिए.
छत्तीसगढ़ी भैंस की प्रमुखता: छत्तीसगढ़ी भैंस में गर्मी सहन करने के साथ प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. इसके अलावा निम्न पोषक तत्वों में भी दूध उत्पादन की क्षमता है. ये भैंस छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है. इनकी संख्या लगभग 9 लाख है. इनका आकार मध्यम, रंग भूरा-काला और सींगें हंसिया के आकार की होती हैं. छत्तीसगढ़ की ये भैंस रोजाना करीब 4 से 6 लीटर दूध देती है. इनकी दूध देने की अवधि 250 दिन तक होती है. दूध में वसा का प्रतिशत 7.5 प्रतिशत होता है और लैक्टोस शक्कर 5 प्रतिशत तथा प्रोटीन 4 प्रतिशत होता है. यह भैंस दिन भर बाहर घूमती रहती है. रात में उसे खाने के लिए धान का पैरा मिलता है. इन भैंसों को हरा चारा और संतुलित आहार दिया जाए तो निश्चित ही इनके दूध देने की क्षमता बढ़कर 7 लीटर तक पहुंच जाएगी.
इन जगहों पर मिलती है ये भैंस: छत्तीसगढ़ी भैंस कवर्धा, कोरबा, सरगुजा, बिलासपुर, जशपुर, महासुमुंद, धमतरी, कांकेर, बलरामपुर, बलौदा बाजार और बेमेतरा में पाई जाती है. ये सभी छत्तीसगढ़ के जिले हैं. इस भैंस का शरीर मजबूत होता है. ये काले रंग की होती है. गुंबद के आकार का माथा होता है और मध्यम से बड़े आकार के सींग होते है. निर्देशित पार्श्वतः पीछे की ओर होता है. दूध देने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है.
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