नई दिल्ली. ये बात बिल्कुल सच है कि हीट स्ट्रेस भैंसों की उत्पादन व प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डालता है. तापमान ह्यूमिडिटी सूचकांक 75 से ज्यादा बढ़ने लगता है तो भैंस हीट स्ट्रेस से ग्रस्त होने के लिए ज्यादा प्रोन होती हैं. इसलिए अप्रैल से सितम्बर के माह तक उत्पादन बेहद ही कम होता है. अप्रैल से सितम्बर माह के दौरान उचित प्रबंधन रणनीतियां, जैसे की पोषण में बदलाव व वायुमंडलीय बदलाव हीट स्ट्रेस के प्रभाव से बचाव करना बेहद जरूरी होता है. वहीं उत्पादन क्षमता में वृद्धि और गर्म वातावरण में अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के लिए गर्मी सहन कर पाने वाले पशुओं का चयन करना भी हीट स्ट्रेस प्रबंधन का एक उपाय है.
हीट स्ट्रेस गर्भधारण दर व गर्भावस्था दर को भी प्रभावित करता है. अधिकतम 78 फीसदी की औसत गर्भधारण दर अक्टूबर माह व न्यूनतम 59 फीसदी गर्भधारण दर अगस्त माह में देखा गया है. जैसे ही तापमान आर्द्रता सूचकांक 75 या 75 से अधिक हो जाता है, औसत गर्भावस्था दर 0.41 से गिर कर 0.25 तक हो जाती है.
हीट स्ट्रेस से बचाव के लिए क्या करना चाहिए
मूल रूप से हीट स्ट्रेस के प्रभाव से पशुओं को बचाने के लिए निम्नलिखित तीन रणनीतियां हैं. आनुवंशिक रूप से गर्मी सहन करने वाली डेरी नस्लें विकसित करना, पोषण में बदलाव, वातावरणीय बदलाव, आनुवंशिक रूप से गर्मी सहन करने वाली डेरी नस्लें विकसित करना भी एक बेहतर विकल्प होता है. वहीं ज्यादा दूध उत्पादन के लिए चयनित पशुओं में मेटाबोलिक हीट ज्यादा बनता है जो पशुओं को हीट स्ट्रेस के लिए ज्यादा बेहतर प्रवृत्त बनाता है. इससे बचने के लिए हीट स्ट्रेस से प्रभावित क्षेत्र से पशुओं का चयन करना या स्थानीय नस्ल से हीट स्ट्रेस अनुकूलन जीन का चयन करना बेहद ही अहम है.
पोषण में बदलाव
हीट स्ट्रेस से प्रभावित होने के कारण भैंसो के खाने की मात्रा में कमी आती है. शरीर में नेगेटिव एनर्जी बैलेंस होता है. इस दौरान चारा व मिश्रण में पोषक तत्वों की मात्रा में सुधार, साथ ही पशु के आहार में पूरक वसा मिलानी चाहिए. ऊर्जा संतुलन के लिए आहार में पूरक प्रोटीन अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं. हीट स्ट्रेस से पीड़ित भैंसो में अच्छी गुणवत्ता तथा कम नष्ट होने वाला प्रोटीन खिलाने से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी पाई गयी है.
पशुओं के छांव की व्यवस्था करें
हीट स्ट्रेस की वजह से भैंसो में अप्रैल से सितम्बर के महीने अत्यंत नाजुक माने जाते हैं. पशुओं के आस-पास के वातावरण में बदलाव हीट स्ट्रेस से बचाव के लिए एक अहम प्रबंधन विधि है. छांव की व्यवस्था पशुओं को सूर्य की सीधी किरणों से बचाती है. फॉगिंग व मिस्टिंग गर्मी से बचाव के कुछ और तरीके हैं. इन तरीकों में पानी की महीन बूंदों को हवा की धारा से तुरंत फैला दिया जाता है जो तीव्रता से उड़ जाती है. इस वजह से आस पास की वायु ठंडी हो जाती है. जबकि फव्वारे पशुओं की चमड़ी और बालों को प्रत्यक्ष रूप से ठंडा करते हैं.
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