नई दिल्ली. आप जिस हेडिंग को पढ़कर इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए आए हैं ये सौ फीसद हकीकत है. असल, में बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने एक अहम फैसला किया है. जिसके दायरे में चिकन राइस, टैक्स पेयर्स और आवारा कुत्ते आ रहे हैं. बीबीएमपी के अफसरों के मुताबिक 2.9 करोड़ खर्च वाली एक पहल की गई है. जिसके तहत बीबीएमपी जल्द ही आवारा कुत्तों के लिए एक रोज भोजन कराने वाला कार्यक्रम शुरू करने जा रही है. बता दें कि इसका मकसद कुत्तों के आक्रामक व्यवहार को कंट्रोल करना और आम लोगों को कुत्तों से सेफ्टी देना है.
बताया गया है कि शहर के आठ क्षेत्रों में करीब पांच हजार आवारा कुत्तों से शुरुआत की जाएगी. नगर निगम प्रतिदिन 367 ग्राम कैलोरी-कैलिब्रेटेड मिश्रण का एक भोजन उपलब्ध कराएगा, जो एक सामान्य 15 किलो के कुत्ते की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में कारगर होगा. हर कुत्ते के खाने पर 22.42 रुपए का खर्च आएगा. जिसमें 150 ग्राम चिकन (प्रोटीन), 100 ग्राम चावल (कार्बोहाइड्रेट), 100 ग्राम सब्ज़ियां (खनिज), 10 ग्राम तेल (वसा) शामिल की जाएगी. इससे 465-750 किलो कैलोरी ऊर्जा कुत्तों को मिलेगी.
जानें कि बेंगलुरु में हैं कितने आवारा कुत्ते
बेंगलुरु नगर निगम के आंकड़ों की मानें तो बेंगलुरु में अनुमानित 2.8 लाख आवारा कुत्ते हैं. बीबीएमपी अधिकारियों ने बताया कि लॉन्च से पहले एक ट्रायल रन पहले ही आयोजित किया जा चुका है. जिसके तहत करीब 500 पशु-कल्याण स्वयंसेवक वर्तमान में शहर भर में लगभग 25 हजाार कुत्तों को खाना खिला रहे हैं. बीबीएमपी अब प्रत्येक जोन में 100 से 125 फीडिंग पॉइंट्स पर 400 से 500 कुत्तों को खाना खिलाने के लिए नामित विक्रेताओं को शामिल करेगा.
किसने तारीफ तो किसने आलोचना की
वहीं स्थानीय लोगों को कुत्तों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए आर्थिक मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. बीबीएमपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह पहली बार कि है जब भारत में किसी नगर निकाय ने आवारा जानवरों को निर्धारित सामूहिक भोजन देने का काम शुरू किया है. यह केवल एक कल्याणकारी कदम नहीं है. यह एक सुरक्षा पहल है.” वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने निगम की इस योजना की सराहना की है, लेकिन आलोचक कुत्तों की नसबंदी के ज़रिए उनकी आबादी पर लगाम लगाने के बजाय उनके खाने-पीने के लिए करोड़ों रुपये आवंटित करने की समझदारी पर सवाल उठा रहे हैं.
स्थानीय लोगों ने क्या कहा
शहर के जयनगर निवासी सौम्या रमेश ने कहा, “पिछले हफ्ते ही मेरे बुज़ुर्ग पिता को आवारा कुत्तों ने दौड़ाया था. चिकन राइस पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बजाय, बीबीएमपी को पहले कुत्तों की नसबंदी और उनकी आबादी को कंट्रोल करने पर ध्यान देना चाहिए. खाना खिलाना कोई समाधान नहीं है.” हुलीमावु की किरण राज ने इसके विपरीत तर्क दिया है. उन्होंने कहा कि यह एक स्वागत योग्य कदम है. हममें से कई लोग पहले से ही कुत्तों को खाना खिलाते हैं.
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