नई दिल्ली. दुनियाभर में अगर सबसे ज्यादा कोई काम करता है तो वो गधा है. गधा सबसे ज्यादा काम भी करता है फिर भी उसे तारीफ मिलने की बजाय उपेक्षा ही मिलती है. प्रचाीन काल से लेकर आज तक गधा लोगों की मदद करता आया मगर, अभी तक लोगों ने उनकी उपेक्षा करना नहीं छोड़ा. सदियों से गधे का उपयोग एक वाहन के तौर पर किया जाता था जो लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान लाने और ले जाने के काम में आते थे, इस उपेक्षा का ही नतीजा है कि गधों की संख्या में लगातार कमी आ रही है.
2019 में भारत सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो पशुओं की आबादी के आंकडों में गधों की संख्या 2012 के मुकाबले 2019 में 61.23 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. 2012 में जहां गधों की संख्या देशभर में 35 लाख 20 हजार थी वही अब यह संख्या 120000 पर आ गई है.
यूपी-राजस्थान में दर्ज की सबसे ज्यादा गिरावट
हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा जिन राज्यों में गधों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई, उनमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश का नाम टॉप लिस्ट में आता है. राजस्थान में गधे 2012 में 81000 थे जो अब मात्र 23000 है. उत्तर प्रदेश में गधों की संख्या 2012 में 57000 थी जो फिलहाल 16000 ही रह गई है.
क्यों आ रही गधों की संख्या में गिरावट
गधों की संख्या में गिरावट आने का मुख्य कारण इनकी उपयोगिता का कम होना बताया जा रहा है. वर्तमान में गधों का बहुत ज्यादा कोई आदमी उपयोग नहीं करता. यही वजह है कि लोगों ने इनकी संख्या को अनदेखा कर दिया है.
1-पारंपरिक उपयोग में गिरावट: प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक में गधों को खेती और परिवहन जैसे श्रम-गहन कार्यों के लिए नियोजित किया गया, लेकिन जैसे-जैसे ये कार्य मशीन आधारित हो गए तोगधों की आवश्यकता कम हो गई, जिसके परिणामस्वरूप उनकी संख्या में गिरावट आई है.
2-मशीनीकरण: पहले ज्यादातर माल ढोने का काम गधे ही करते थे लेकिन माल ढोने के लिए वाहनों का प्रयोग होने की वजह से गधे कम होते जा रहे हैं.
3-निवास स्थान पर अतिक्रमण: पहले की अपेक्षा अब हिंदुस्तान में शहरीकरण बहुत बढ़ता जा रहा है. लगातार बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण गधों के मूल निवास स्थान पर आक्रमण हो रहा है, जिससे गधों को रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पा रही है.
4-अवैध व्यापार: गधों के दूध का प्रयोग पारंपरिक दवाओं और कॉस्मेटिक आइटम बनाने के लिए किया जाता है. इसलिए गधों को भारत से विदेश ले गए. गधों के अवैध व्यापार ने भी इनकी आबादी में कमी लाने में और योगदान दिया है.
5-तस्करी होता है गधे का मांस: लोग ऐसा मानते हैं कि गधे के मांस का सेवन करने से पीठ का दर्द और अस्थमा को कम करता है और पुरुषों में पौरुष शक्ति को बढ़ाता है. इसलिए भारत और विदेशों दोनों में बड़े पैमाने पर गधों की तस्करी होती है.
6-खाल के लिए मार देते हैं गधों को: चीन में पारंपरिक चीनी चिकित्सा में प्रयोग किए जाने वाले एक प्रकार के जिलेटिन “एजियाओ” की मांग बढ़ रही है. इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए गधे की खाल का अधिकांश निर्यात चीन को किया जाता है. इसकी खाल को उबालने से एजियाओ निकलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह एनीमिया और रक्त परिसंचरण संबंधी समस्याओं में मदद करता है.
गधे को बचाने की रणनीतियाँ
भारत में गधों और खच्चरों को बचाने के लिए आईएलआरआई के नेतृत्व वाली परियोजना के तहत राज्य पशुपालन और पशु चिकित्सा विभागों, विश्वविद्यालयों और अन्य हितधारकों के समर्थन से करीब छह राज्यों में पहले ही काम शुरू कर दिया था.
अश्व कल्याण पर एक राष्ट्रीय नीति के तहत काम करने जोर
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कहा कि अश्व कल्याण पर एक राष्ट्रीय नीति अन्य चुनौतियों के साथ-साथ मशीनीकरण को तेजी से अपनाने और पर्याप्त संख्या में गधों को बनाए रखने को संतुलित करने की खोज करके गधों की आबादी में गिरावट जैसे मुद्दों का समाधान करने में मदद करेगी.
गधी के दूध के स्वास्थ्य लाभों के बारे में करें जागरूक
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) और आईसीएआर के महानिदेशक ने कहा कि जो किसान अपनी आजीविका के लिए गधों पर निर्भर हैं, उनके कल्याण को गैर-गोजातीय दूध को बढ़ावा देकर और गधी के दूध के स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करके संरक्षित किया जाना चाहिए.
गधी का दूध पौष्टिक कीमत हजारों रुपये प्रति लीटर
उन्होंने शोधकर्ताओं से यह पता लगाने की अपील की है कि क्या गधी के दूध का उपयोग इम्यूनो-मॉड्यूलेटर जैसे फार्मास्युटिकल उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. गधी का दूध पौष्टिक होता है और भारतीय दूध की कीमत 7,000 से 10,000 रुपये प्रति लीटर के बीच हो सकती है. इसमें अन्य दूध की तुलना में कम कैलोरी और कम वसा होता है और अधिक विटामिन डी होता है.
गधों का होना चाहिए सर्वेक्षण
अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आईएलआरआई) और साझेदार ग्रामीण और शहरी समुदायों में उनके उपयोग के पैटर्न की पहचान करने के लिए भारत के गधे और खच्चर की आबादी का मानचित्रण कर रहे हैं.’भारतीय गधों और खच्चरों की आबादी के मुद्दों का मानचित्रण और संभावित हस्तक्षेप रणनीतियों और साझेदारी की पहचान’ परियोजना, जो गधा अभयारण्य (टीडीएस), यूके द्वारा समर्थित है ने छह भारतीय राज्यों (राजस्थान, उत्तर प्रदेश) में हितधारक बैठकें और घरेलू सर्वेक्षण आयोजित किए हैं. (उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र और बिहार) में गधों और खच्चरों की बड़ी आबादी है.
ये काम करें तो बढ़ सकती है गधों की संख्या
-गधी के दूध पर विशेष जोर दिया जाए और गधी के दूध उत्पादकों को बढ़ावा देने के लिए एक सहकारी मॉडल का विकास किया जाए.
-गधों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय गधा उत्पादन कार्यक्रम (एनडीपीपी) स्थापित किया जाए.
-गधी के दूध पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) प्रमाणन लागू किया जाए.
-प्रासंगिक सब्सिडी के साथ गधों के लिए कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम शुरू किया जाए.
-स्वदेशी गधों की नस्ल सुधारकर इनकी संख्या बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
-गधी के दूध के औषधीय और कॉस्मेटिक गुणों का आर्थिक विश्लेषण और उचित विस्तार के माध्यम से प्रयोग किया जाए.
गधा पालन में बाधाएँ
-भारत में गधा फार्म बहुत कम हैं और अभी जो संचालित हो रहे हैं वो अच्छी तरह से संरचित नहीं हैं.
-गधी का अपर्याप्त दूध उत्पादन, जिसे बढ़ाने की जरूरत है. इस पर सरकार को काम करने की जरूरत है.
-खाद्य उत्पादों से संबंधित कोई कानून नहीं है, गधी का दूध उपभोक्ताओं के बीच अधिक लोकप्रिय नहीं हो पा रहा है.
-देश का भूमिहीन किसान गधी के दूध के फायदे और वित्तीय मूल्य से अनजान है.
-गधों को ज्यादातर भारी वस्तुओं को ढोने के लिए ही पैक जानवरों के रूप में उपयोग किया जाता है जबकि गधी का दूध हजारों रुपये लीटर में बिकता है.
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