नई दिल्ली. बढ़ते तापमान की वजह से पशुपालन में कई तरह की समस्याएं आ रही हैं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, मुरैना के सत्येन्द्र पाल सिंह की मानें तो बढ़ते तापमान की वजह से दूध उत्पादन से लेकर मीट प्रोडक्शन पर भी असर पड़ रहा है. इसके चलते पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है. बढ़ता तापमान पशुपालन में कई तरह से असर डाल रहा है. इसके कारण दूध उत्पादन प्रभावित होने के साथ ही पशु प्रजनन की समस्या भी पैदा हो रही है. उत्तर भारत में पशुपालकों द्वारा गायों की बजाय भैंस पालन ज्यादा जोर दिया जाता है. भैस एक सीजनल ब्रीडर है. ज्यादातर भैस बरसात से लेकर सर्दियों में (अगस्त से लेकर मार्च तक) गर्मी में आकर गर्भधारण करती हैं लेकिन गर्मी के मौसम में (अप्रैल से लेकर जुलाई तक) गर्मी में आने और गर्भधारण करने का प्रतिशत काफी कम हो जाता है.
सत्येन्द्र पाल सिंह का कहना है कि इतना ही नहीं तापमान में बढ़ोत्तरी होते ही भैंस का दूध उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित होता है. यदि इसी प्रकार से तापमान में बढ़ोत्तरी सर्दियों के दिन कम होने के साथ ही गर्मियों के दिनों में बढ़ोत्तरी होती रही तो निश्चित रूप से उत्तर भारत में भैंस से प्राप्त होने वाले दूध उत्पादन और उनके प्रजनन में गिरावट आयेगी. देश के उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब जैसे बड़े दुग्ध उत्पादक राज्य इससे बुरी तरह से प्रभावित होगें.
दूध के अलावा इसका भी नुकसान
शुरुआाती रिसर्च से यह बात साफ हो गई है कि तापमान के बदलाव और बढ़ते तापमान के चलते पशुओं के दूध उत्पादन और विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है. गर्मियों में थर्मल तनाव के कारण दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में गिरावट के निगेटिव असर के चलते उनका यौवन, गर्भ धारण की क्षमता, गर्भावस्था और दूधकाल की अवधि प्रभावित होती है. थर्मल तनाव के कारण देश में गाय और भैंस से प्राप्त होने वाला लाखों लीटर दूध उत्पादन प्रभावित होता है. यह देखा गया है कि अकेले उत्तर भारत में तापमान में बढ़ोत्तरी के नकारात्मक प्रभाव के कारण गाय और भैंस के दुग्ध उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है. इससे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाली क्रॉस ब्रीड गायें, भैस एवं भारतीय गायें भी प्रभावित होती हैं.
पशु केे विकास और मांस उत्पादन पर पड़ता है असर
पशुओं का ग्रोथ और विकास उनके “जीनोटाइप एवं पर्यावरणीय कारक” के द्वारा प्रभावित होता है. जलवायु तत्वों एवं अन्य पर्यावरणीय कारक जैसे आहार की उपलब्धता शरीर विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती है. शारीरिक विकास एक संवेदनशील प्रक्रिया है. जिस पर थर्मल तनाव का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. खासकर उष्मा को संष्लेषित करने के दौरान, तनावपूर्ण स्थिति की तुलना में पशुओं का विकास आरामदायक स्थिति में बेहतर होता है. पशुओं में नवबंर से लेकर मार्च तक ज्यादा विकास दर रहती है, जबकि अप्रैल से लेकर सितबंर तक ऐसा नहीं होता है.
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