नई दिल्ली. भारत दूध उत्पादन के मामले में विश्व में पहले स्थान पर है. यहां जितना दूध उत्पादन होता है. उसमें बड़ी मात्रा में भैंस का दूध शामिल होता है. वैसे तो भैंस ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला पशु है लेकिन हीट स्ट्रेस भैसों के उत्पादन और प्रजनन के लिए एक बड़ी चुनौती है. काली चमड़ी, कम घने बाल और अन्य कारणों की वजह से भैंस में हीट स्ट्रेस का ज्यादा खतरा रहता है. बहुत कम भैसें प्रसव के बाद अप्रैल और मई में हीट में आती है, जब तापमान अत्यधिक होता है. जब तापमान व ह्यूमिडिटी थर्मो-न्यूट्रल जोन से ज्यादा होता है. सूरज की रौशनी को सही ढंग से बर्दाश्त न कर पाने की वजह से जानवर हीट स्ट्रेस में आ जाते हैं.
हीट स्ट्रेस का अनुमान तापमान हयूमिडिटी (टी एच आई) के द्वारा लगाया जा सकता है. करनाल में एक अध्ययन द्वारा विभिन्न तापमान ह्यूमिडिटी इंडेक्स मॉडल बनाये गये. जिसके दौरान 81 की अधिकतम तापमान ह्यूमिडिटी सूचकांक जून के माह में और 56 की न्यूनतम तापमान ह्यूमिडिटी सूचकांक जनवरी माह में पाई गयी. यह माना जाता है कि 75 की अधिकतम तापमान ह्यूमिडिटी सूचकांक के बाद भैसो के उत्पादन और प्रजनन पर प्रभाव पड़ता है.
किस वक्त हीट स्ट्रेस ज्यादा होता है
इसलिए एक साल को दो भागों में बिना हीट स्ट्रेस वाला एवं हीट स्ट्रेस वाला जोन में बांटा जा सकता है. बिना हीट स्ट्रेस वाले जोन में जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अक्टूबर, नवम्बर एवं दिसंबर महीने और हीट स्ट्रेस वाले जोन में अप्रैल से सितम्बर महीने शामिल हैं. हीट स्ट्रेस वाले जोन में मई व जून महीने प्रजनन संबंधी मानकों के मद्देनजर से क्रिटिकल हीट स्ट्रेस वाले महीने एवं जुलाई से सितम्बर महीनों में उत्पादन में अत्यधिक गिरावट आती है. इसलिए इसे क्रिटिकल हीट स्ट्रेस जोन माना जाता है.
प्रोडक्शन पर हीट स्ट्रेस का गलत असर
हाई जेनेटिक क्षमता वाले पशुओं के दूध उत्पादन और दूध के कम्पोजिशन पर हीट स्ट्रेस का बेहद ही बुरा असर पड़ता है. तापमान ह्यूमिडिटी इंडेक्स और दूध उत्पादन इस तरह नेगेटिव रूप से संबंधित है. तापमान आर्द्रता सूचकांक में 68 से 78 तक की बढ़ोत्तरी ड्राई फीड की आवश्यकता को 9.6 फीसदी और दूध उत्पादन को 21 फीसदी कम कर देता है. भैंसों में जुलाई से सितम्बर के महीनों में यह देखा गया है कि टीएचआई में मात्र एक अंक की बढ़ोतरी 8.18 किलो कैलोरी / किलो ऊर्जा संशोधित दुग्ध उत्पादन (इ सी एम वाई) कम कर देती है. गर्म व ह्यूमिडिटी वाले मौसम में दूध उत्पादन ही नहीं बल्कि दूध में वसा व प्रोटीन की मात्रा भी प्रभावित होती है.
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