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Poultry Farming: ई-कोलाई संक्रमण, मुर्गियों में कैसे रोकें इसे, जानिए यहां

बीमारी कोई भी हो, पशुपालन या मुर्गी पालन में इसे रोकना बेहद जरूरी होता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. मुर्गियों को खास देखभाल की जरूरत पड़ती है. अगर गर्मी में मुर्गियों का खास ख्याल न रखा जाए तो फिर परेशानी बढ़ सकती है. कहने का मतलब ये है कि गर्मी के मौसम के लिहाज से मुर्गियों की देखरेख की जानी चाहिए. पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि गर्मी के दिनों में मुर्गियों के शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जो मुर्गियों के लिए सही नहीं है. ऐसे में उनमें मृत्युदर भी दिखाई दे सकती है. वहीं कई सारी बीमारियां भी मुर्गियों में फैलती हैं. आज बात कर रहे हैं एक ऐसी ही बीमारी की, ये है ई-कोलाई संक्रमण. इसके बारे में बात करने से पहले जान लीजिए कि मुर्गियों में अगर संक्रमण फैल जाए तो उसको रोकना बेहद जरूरी होता है. नहीं तो काफी नुकसान हो सकता है.

बीमारी कोई भी हो, पशुपालन या मुर्गी पालन में इसे रोकना बेहद जरूरी होता है. कई बीमारियां ऐसी होती है, जो बड़ा नुकसान पहुंचाती हैं. आइये जानते हैं एक ऐसी ही बीमारी के बारे में और इसके रोकथाम और बचाव के बारे में पूरी जानकारी.

क्या है ई-कोलाई संक्रमण: पक्षियों का यह एक जीवाणुजनित रोग है, जिससे कई प्रकार के संक्रमण पक्षियों में हो सकते हैं. इस जीवाणु द्वारा कोली बेसीलोसिस, एगपेरीटोनाइटिस, एयर सेक्यूलाइटिस, सालपिंजाइटिस, हजारे डिजीज आदि रोगों के लक्षण देखे जा सकते हैं. सामान्यतः यह जीवाणु पशुओं, पक्षियों और मनुष्यों आदि के पेट और आंतों में पाया जाता है. स्ट्रेस एवं अन्य अवस्थाओं में होस्ट को संक्रमित कर विभिन्न रोग पैदा कर देता है.

क्या हैं इसके कारण: एस्केरिया कोलाई, ग्राम नेगेटिव रोड के आकार के जीवाणु हैं. इस रोग का प्रसार अंडों के माध्यम से हो सकता है, जिससे चूजों में अत्यधिक मृत्यु दर देखी जा सकती है. लिटर व बीट रोग को फैलाने में मददगार होते हैं. मुंह और हवा के माध्यम से यह संक्रमण फैल सकता है.

कॉलीसेप्टीसीमिया: खून में इस जीवाणु के मिलने से यह अवस्था प्रकट होती है और इसमें सर्वप्रथम गुर्दों और हृदय की झिल्ली में सूजन तथा हृदय में स्ट्रा कलर का तरल पदार्थ मिलता है.

एयरसेक्यूलाइटिस: खून से अथवा सीधे ही सांस नली से यह जीवाणु फेफड़ों में पहुंचकर एयरसेक्यूलाइटिस नामक रोग प्रकट करता है, जिसमें उत्पादन कम होना, खांसी आना तथा रेटलिंग आदि लक्षण दिखलाई देते हैं.

सेप्टिसीमिया: इसके कारण ओविडक्ट में भी यह संक्रमण पहुंच जाता है, जिससे अण्डा उत्पादन कम हो जाता है.

चूजे की नाभि द्वारा संक्रमण प्रवेश कर ओमफलाइटिस रोग के लक्षण दिखलाता है, जबकि एयरसेक्यूलाइटिस के प्रभाव के साथ पेरेटोनियम झिल्ली में सूजन पाई जाती है, जिसे एगपेरिटोनाइटिस कहते हैं. एंट्राइटिस- ई. कोलाई का आंतों में संक्रमण एंट्राइटिस नामक रोग पैदा करता है, जिससे आंतों के अंदर की सतह पर सूजन पाई जाती है. पक्षी पतली बीट जैसे लक्षण करता है. इस अवस्था में आंतों में अन्य संक्रमण जैसे कि आइमेरिया
प्रजाति के लगने की संभावना रहती है. कोलोग्रेन्यूलोमा अथवा हजारे डिजीज: आंतों एवं लीवर पर जगह-जगह ट्यूमर जैसी गांठें दिखाई पड़ती हैं. इस अवस्था को कोलोग्रेन्यूलोमा कहते हैं.

क्या है इसके उपचार: पोल्ट्री फार्म पर रोग की जानकारी होने पर तत्काल पशु चिकित्सक से संपर्क करें और इसका इलाज कराएं. पशु चिकित्सक की सलाह पर ऐन्टीबायोटिक्स का उपयोग कर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है.

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