नई दिल्ली. पोल्ट्री फीड के लिए पोल्ट्री संचालकों की पहली पसंद मक्का है. एक आंकड़े के मुताबिक 70 फीसदी फीड में मक्का का इस्तेमाल होता है. क्योंकि मक्का में वो तमाम गुण हैं जो पोल्ट्री फीड के लिए जरूरी हैं. वहीं अब मक्का की खेती के लिए किसानों को प्रेरित भी किया जा रहा है. बिहार राज्य में किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में मक्का की खेती के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग करने का तरीका सिखाया जा रहा है. वहीं जिन किसानों ने नई तकनीक के जरिए मक्का की खेती की है उन्हें इसका फायदा भी मिला है.
कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल का कहना है कि कटिहार जिले के कोढ़ा प्रखंड क्षेत्र में किसानों द्वारा मक्का की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां पर मक्का को पीला सोना की संज्ञा दी जाती है. वहीं इस वक्त मक्का की कटनी होने लगी है. उन्होंने बताया कि वो किसान प्रदीप कुमार चौरसिया ने जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम अंतर्गत उन्नत तकनीक अपनाते हुए कटिहार जिले के मुसापुर गांव में मेढ़ पर मक्के की बुवाई की थी. किसान को मक्का की कटनी के दौरान लगभग 112 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मक्का का उत्पादन हुआ. जिससे उनको एक हेक्टेयर में 1 लाख 58 हजार 500 शुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ.
कृषि विभाग कर रहा है सहयोग
सचिव ने बताया कि किसान ने पिछले साल फ्लैट बेड पर मक्का की खेती करके करीब 98 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मक्का का उत्पादन किया था. रबी (2023-24) कटिहार जिले में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत कुल लगभग 450 एकड़ में मेढ़ पर मक्के की खेती की गई है. उन्होंने कहा कि कृषि विभाग के प्रसार कार्यकर्त्ता तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से किसानों को समय-समय पर मेढ़ पर मक्के की खेती से संबंधित प्रशिक्षण के साथ-साथ एक एकड़ में फसल लगाने के लिए बीज भी उपलब्ध कराया जाता है. साथ ही कीड़े-मकोड़े से बचाव के लिए छिड़काव के लिए दवाई इत्यादि भी दिया गया है.
इसलिए की जाती है मक्का की खेती
मक्के की खेती कर जलवायु परिवर्तन के दौर में फसल चक्र सुधारने में भी कृषि विभाग मदद करता है. अधिकारियों ने बताया कि किसानों को मक्का की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके लिए राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. दक्षिण बिहार में वर्षा कम होती है. इस वजह से किसान ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसलें नहीं लगा पाते हैं. यहां धान की रोपाई और कटाई देर से होती है. इस वजह से रबी मौसम में गेहूं लगाने में देर होती है. उत्पादन कम मिलता है. मक्के की खेती कर जलवायु परिवर्तन के दौर में फसल चक्र सुधारने में मदद मिलेगी एवं किसानों को अधिक मुनाफा मिलती है.
मक्का किसानों को मिल रहा अच्छा दाम
गौरतलब है कि पोल्ट्री सेक्टर में फीड पर टिका हुआ है. फीड से मतलब मक्का और सोयाबीन से है. जबकि बार-बार पोल्ट्री फीड के दाम में इजाफा होता चला जा रहा है. दूसरी ओर पोल्ट्री प्रोडक्ट के दाम में इतना ज्यादा इजाफा नहीं होता है. मौजूदा वक्त में मक्का से इथेनॉल बनाया जा रहा है. इसके चलते इसके दाम ने आसमान छूना शुरू कर दिया है. वहीं इसको लेकर पोल्ट्री फेडरेशन का कहना है कि उन्हें किसानों को मिले रहे अच्छे रेट से कोई दिक्कत नहीं है. वो चाहते हैं कि किसानों को अच्छा दाम मिले. हालांकि इसके दूसरे पहलू पर गौर करें तो पोल्ट्री कारोबार से जुड़े 10 हजार के करीब छोटे किसानों को मुश्किल हो रही है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए. बीते कुछ साल में ही पोल्ट्री फीड के दाम में 10 से 15 फीसदी का इजाफा हुआ है.
सरकार समझे पोल्ट्री सेक्टर की जरूरत
फेडरेशन से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार से हमारी मांग है कि वो जीएम मक्का की खेती करने की इजाजत दे. ऐसे में पैदावार ज्यादा होगी तो फूड, फीड और फ्यूल सभी की जरूरत को पूरा किया जा सकता है. पोल्ट्री फेडरेशन के अध्यक्ष रनपाल डाहंडा कहते हैं कि सरकार को पोल्ट्री फार्मर की पीड़ा और पोल्ट्री सेक्टर की जरूरत को समझना होगा. इस वक्त भारत दुनिया में अंडा उत्पादन करने के मामले में पांचवीं पोजिशन पर है. पोल्ट्री एक्सपर्ट इस बात को मानते हैं कि इंडियन पोल्ट्री का इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत मजबूत है और जब चाहे उत्पादन को जरूरत के हिसाब से बढ़ा सकता है.
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