नई दिल्ली. पशुपालन करने वाले पशुपालाकों की ये चाहत होती है कि उनका पशु ज्यादा से ज्यादा दूध दे. अगर ये दूध अच्छी क्वालिटी का होता है तो इसका दोहरा फायदा पशुपालकों को मिलता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ज्यादा बेहतर क्वालिटी का दूध उत्पादन करने के लिए पशुओं को ऑर्गेनिक और पौष्टिक चारा खिलाना चाहिए. जब पशु इस तरह का चारा खाएंगे तभी वह ऑर्गेनिक और पौष्टिक दूध भी देंगे और उनका मीट भी ऑर्गेनिक होगा. इसलिए जरूरी है कि उन्हें ऑर्गेनिक और पौष्टिक चारा मुहैया कराया जाए. गेहूं—बाजरा और धान आदि की फसल ही नहीं पशुओं को हरा चारा भी केमिकल फ्री होना चाहिए.
यही वजह है कि इसके तहत केंद्र सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना की उप योजना भारतीय प्रकृति कृषि पद्धति को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है. जिससे गाय के गोबर और मूत्र से फसलों के लिए नेचुरल खाद तैयार की जाएगी. जिससे हरा चारा भी उगाया जा सकेगा.
एक करोड़ किसानों को जोड़ने का लक्ष्य
गोबर और गाय के मूत्र मौत से जीवामृत, बीजामृत और नीमास्त्र बनाया जाएगा. अब तक भारत सरकार की इस योजना पर आठ राज्यों में काम शुरू भी हो चुका है. 3 साल में एक करोड़ किसानों को इस योजना से जोड़ने का टारगेट सेट किया गया है. साथ ही 10 हजार जैव संसाधन इनपुट केंद्र स्थापित करने की बात भी कहीं जा रही है. केन्द्र सरकार ने भारतीय प्रकतिक कृषि पद्वति (बीपीकेपी) उपयोजना के तहत आठ राज्यों छत्तीसगढ़, करेल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, आंध्रा प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में बीपीकेपी केन्द्र को स्थापित कर दिया है. ये सभी केन्द्र करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन पर होने वाली नेचुरल फार्मिंग को कवर कर रहे हैं.
इस तरह बनाए चारा
वहीं कृषि मंत्रालय से जुड़े कई संस्थानों में किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने के बारे में जानकारी मुहैया कराई जा रही है. जबकि रिसर्च सेंटर खुद संस्थान में खेतों में ऑर्गेनिक चारा उगा रहा है. इस संबंध में चारा एक्सपर्ट साइंटिस्ट डॉक्टर मोहम्मद आरिफ ने कहा कि जीवामृत बनाने के लिए गुड़ और बेसन, देसी गाय का गोबर और गोबर मूत्र में मिट्टी मिलाकर इसे बनाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि सभी चीज मिलाकर मिट्टी में पहले से ही मौजूद फ्रेंडली बैक्टीरिया को और बढ़ा देते हैं इसका फायदा चारा को मिलता है.
बकरियों को खिलाने से भी मिलता है फायदा
डॉ. आरिफ उनका कहना है कि बकरा-बकरियां और भैंस को खासतौर पर ऑर्गेनिक चारा खिलाने का बड़ा फायदा मिलता है. जब मीट एक्सपोर्ट होता है तो उससे पहले हैदराबाद की एक बै में मीट की जांच की जाती है. यदि जांच में या बात सामने आती है कि मीट में नुकसान दायक पेस्टिसाइट है तो बकरे की मीट और बीफ को एक्सपोर्ट नहीं किया जाता. कंसाइनमेंट वही रोक दिया जाता है. जिससे कारोबारी को बड़ा नुकसान हो जाता है.
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