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Animal Fodder: इस तरह का चारा खाने से पशु हो जाते हैं बीमार, यहां पढ़ें लक्षण और इलाज का तरीका

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प्रतीकात्मक फोटो:

नई दिल्ली. देश में कई स्थानों में पशु चारे के रूप में सूबबूल की पत्तियां उपयोग में लाई जाती हैं. सुबबूल की पत्तियों में टॉक्सीन पाया जाता है, जिसे माइमोसिन कहते हैं. यही वजह है कि माइमोसिन एसिड ऐसे पशुओं में माइमोसिन टॉक्सीन का कारण बनता है. माइमोसिन की अधिकता वाली सुबबूल आदि की पत्तियों को बिना उपचारित किये पशु चारे में प्रयोग करने से पशुओं को अनेक रोग हो सकते हैं. इनमें पशु के बाल गिरना प्रमुख हैं. भेड़ के मेमने दो सप्ताह के अंदर ही कमजोर हो जाते हैं. उनके वजन में कमी, चाल में लड़‌खड़ाहट, भूख में कमी, मुंह में झाग तथा मसूड़ों और जीभ पर छिलने के निशान दिखाई देने लगते हैं.

कुछ पशुओं में गल ग्रंथियों में ज्यादा इजाफा हो जाता है. सूबबूल की नई पत्तियों में सबसे ज्यादा 6 से 7 प्रतिशत तक माइमोसिन अम्ल की मात्रा होती है. पशुपालक यदि सूबबूल का उपयोग पशुचारे के रूप में निरापद रूप से करना चाहें, उन्हें कुछ सावधानियां अपनानी चाहिये. सुबबूल के साथ प्रतिशत फेरस सल्फेट खिलाने से उसकी माइमोसिन टॉक्सीन एकदम कम हो जाती है. पशुओं को सूबबूल चारे के साथ लोहा, तांबा, जस्ता आदि के लवण खिलाने से भी टॉकसीन में काफी कमी पाई जाती है. सूबबूल की पत्तियों को 60 डिग्री सेल्सियस ताप पर उपचारित या गर्म करने से भी माइमोसिन टॉक्सीन की मात्रा में भारी कमी आ जाती है.

चारा खिलाना कर दें बंद
सूबबूल को अन्य पशुचारे जैसे-घास, गन्ने की पत्तियों एवं अन्य चारा वृक्षों की पत्तियों आदि के साथ एक अनुपात में मिलाकर देने से पशुओं में माइमोसिन टॉक्सीन में कमी पाई जाती है. इस तरह चारे में मात्र 20 प्रतिशत तक ही सूबबूल की पत्तियों का उपयोग करें. सूबबूल की पत्तियों को 12 घंटे तक भाप में उपचारित करने पर भी इनकी विषाक्तता में कमी आ जाती है. इन सावधानियों के बाद भी सूबबूल पर पोषित पशुओं में माइमोसिन टॉक्सीन के लक्षण दिखाई देने पर सूबबूल का चारा खिलाना बंद कर दें. इन लक्षणों के दूर हो जाने पर ही उपरोक्त सावधानियां बरतते हुये पुनः सुबबूल देना शुरू करें. रूमेन में जीवाणु प्रोटीन के संश्लेषण के लिये अमोनिकल नाइट्रोजन मात्रा 5 से 7 मि.ग्रा./100 मि.ली. होनी चाहिये, लेकिन टॉक्सीन की स्थिति में रूमेन द्रव में यह 80 मि.ग्रा./100 मि.ली. एवं रक्त में 0.7 से 0.8 मि.ग्रा./100 मि.ली. हो जाती है.

इस तरह की दिक्कतें आती हैं
चारा उपचारित करने के लिये लाई गई यूरिया एवं यूरिया के घोल को पशु की पहुंच से दूर रखें.
चारे में यूरिया उपचारित करते समय पूरी सावधानी बरतें तथा यूरिया की निर्धारित मात्रा ही उपयोग करें. यूरिया टॉक्सीन से पशु बैचेन होने लगता है और मुंह से अधिक मात्रा में लार टपकती है. चारे में यूरिया के घोल को मिलायें. उपचारित चारे को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अन्य चारे के साथ मिलाकर दें. उपचारित चारे देने के बाद पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलायें. अतः पशुपालकों को यह ध्यान रखना चाहिये. कई बार पशुओं की मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है और पशु लड़‌खड़ाने लगता है. पशु को आफरा आ जाता है एवं सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. पशु बार-बार मल-मूत्र करता है। यूरिया की अधिक मात्रा के सेवन से पशु की शीघ्र मृत्यु हो जाती है.

उपचार के बारे में पढ़ें
यूरिया टॉकसीन के लक्षण सामने आने के बाद पशु को सर्वप्रथम 25 से 30 लीटर ठंडा पानी पिलाना चाहिये. पानी में थोड़ा गुड़ या शीरा मिलाने से पशु आसानी से पानी पी लेता है. 100 से 200 मि.ली. एसीटिक एसिड (सिरका) 2 से 5 लीटर पानी में मिलाकर पिलाना चाहिये. विषाक्तता के प्रभाव के अनुसार सिरके की मात्रा बढ़ाई जा सकती है. ज्वार, बाजरा, चरी, मक्का, जई आदि की फसलें न खायें. यूरिया उपचार करते समय यूरिया की सही मात्रा का प्रयोग करें एवं यूरिया उपचारित चारे की मात्रा आहार में धीरे-धीरे बढ़ायें.

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