नई दिल्ली. मछली पालन में अच्छी कमाई है, कम जगह पर भी मछली पालन किया जा सकता है. अब नई तकनीकों के जरिए मछली पालन करके आप भी मछली पालन में अच्छी इनकम ले सकते हैं. मछली पालन के लिए सरकारी स्कीम भी चल रही हैं. कई तरह ही प्रोत्साहन योजनाएं भी सरकार दे रही है, ताकि मछली पालन को बढ़ावा मिल सके. ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि देश में मछली के मांस की मांग बढ़ गई है. मछली पालन अब एक हजार स्क्वायर फीट या इससे अधिक जगह में भी किया जा रहा है. खासबात ये है कि यहां कौन सी मछली पाली जाए जो इनकम को ग्रोथ दे. आइये आज बात करते हैं, छोटे तालाब में मछली पालन के लिए उपयुक्त मछलियों के बारे में.
जैसा कि सभी जानते हैं कि मछली पालन एक एकड़ के तालाब में बेहतर होता है. लेकिन अब मछली पालन में नई तकनीक की ट्रेनिंग से इसे छोटे तालाब में भी अच्छे से कर सकते हैं. बस कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. जिनमें सबसे पहली बात है कि तालाब में पाली जाने वाली मछलियां कौन सी होनी चाहिए. वैसे तो तालाब में तीन लेयर में मछली पलती हैं. क्योकि मछली उपरी सतह, मध्यम सतह और निचली सतह पर रहती हैं. लेकिन छोटे तालाब में आक्सीजन और पीएच लेबल का ध्यान रखते हुए कुछ चुनिंदा मछली पालना फायदे का सौदा रहता है.
छोटे तालाब में पाली जाने वाली मछली: छोटे तालाब में कैटफिश पाली जा सकती है. फिश एक्सपर्ट का कहना है कि फंगास ही पालनी चाहिए. देसी मछली में मांगुर का वजन तीन सौ से चार सौ ग्राम तक होता है. इन दिनों फंगास की बहुत डिमांड है. छोटे तालाबों में कतला, रोहू डाल सकते हैं, सिल्वर कॉर्प भी पाल सकते हैं. मछली एक्सपर्ट के मुताबिक छोटे तालाब में कतला, फंगास पालते हैं. क्योंकि अभी बाजार में सबसे ज्यादा मांग फंगास की है.
एक साल में तीन से चार बार ले सकते हैं पैदावार: मछलियों का बिजनेस करने में थोड़ा सा संयम और समय का ध्यान रखना चाहिए. एक मछली करीब पांच से सात महीने में ग्रोथ लेती है और साल में करीब तीन से चार बार इसका उत्पादन लिया जा सकता है. मछलियों के तालाब में आक्सीजन का ध्यान रखना जरूरी है. मछली पालन में अच्छे तालाब के लिए इस बात का ध्यान रखें कि वहां खतरपतवार और मछलियों को नुकसान पहुंचाने वाले पौधे ना हों. सूरज की रोशनी ठीक से पहुंचे, इसलिए किसी भी प्रकार की रुकावट तालाब के पास ना हो.
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