नई दिल्ली. मछली पालन करने वाले मछली पालक भाइयों के दिमाग में अक्सर यह सवाल उठता है कि मछली पालन करने में देसी मछली पालने में ज्यदा फायदा मिलता है या फिर विदेशी मछलियों को पालने में ज्यादा मुनाफा होता है. बता दें कि देसी मछलियां क्वालिटी और टेस्ट के लिए जानी जाती हैं. उत्तर प्रदेश मछली पालन विभाग (Uttar Pradesh Fisheries Department) की मानें तो वहीं विदेशी मछलियां तेजी से ग्रोथ ज्यादा मशहूर हैं. जबकि देसी मछलियों के तौर पर रोहू, कतला, मृगल जैसी प्रजातियों को पालकर सबसे ज्यादा कमाई की जा सकती है. ज्यादातर मछली पालक किसान इन्हीं मछलियों को पालते हैं.
क्योंकि ये मछलियां अपने स्वाद के लिए बहुत ज्यादा पसंद की जाती हैं और इसी वजह से उनकी मार्केट में डिमांड भी ज्यादा रहती है. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक उनकी मांग बनी रहती है लेकिन इनकी ग्रोथ की बात की जाए तो विदेशी मछलियों के मुकाबले कम होती है. इसलिए इन मछलियों के पालन में ज्यादा समय देने की जरूरत पड़ती है.
यहां पढ़ें दोनों मछलियों के बारे में
जबकि अगर आप विदेशी मछलियों को पालते हैं जिसमें ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, और पंगेसियस जैसी प्रजातियां पाई जाती हैं तो इन मछलियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनकी तेजी से ग्रोथ होती है.
अगर तालाब में सही प्रबंधन किया जाए तो 6 से 8 महीने में ही इन प्रजातियों की मछलियां बाजार में बेचने लायक हो जाती हैं.
यही वजह है कि बहुत से मछली पालक भाई अब विदेशी मछलियों को ज्यादा तवज्जो देने लगे हैं. जबकि ये मछलियां उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं.
यहां ये बात भी ध्यान देने वाली है कि देसी मछली भले ही धीमा बढ़ती हैं लेकिन इन मछलियों का दाम ज्यादा मिलता है.
जबकि दूसरी ओर विदेशी मछलियां तेजी से बढ़ती हैं लेकिन कई बार बाजार में इनका भाव कम लगता है.
यानी एक तरफ समय ज्यादा लग रहा है तो दूसरी ओर दाम कम मिल रहा है. ऐसे में दोनों में सही चुनाव करना बेहद ही जरूरी होता है. तभी आपको मछली पालन में फायदा होगा.
निष्कर्ष
देसी मछलियों का बाजार भाव 200 से 350 किलो रहता है. अगर लंबे समय और धैर्य से काम किया जाए तो देसी मछलियों में मुनाफा ज्यादा मिलता है.
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